अब, कितना कठिन हो चला है..कतरा-कतरा कर के पल बिताना.पल दो पल ऐसे हों ,जब काम की खट-पट ना हो..इसके लिए हर पल खटते रहे..बचपन की नैतिक-शिक्षा,जवानी की मजबूरी औरअधेड़पन की जिम्मेदारियों से उपजी सक्रियता ने..एक व्यक्तित्व तो दिया..पर...पल दो पल ठहरकर,उसे महसूसने, जीने की काबलियत ही सोख ली..संतुष्टि ; जैसे आँख मूँद लेने के बाद हीआ पाती हो जैसे.. पलकों परज़माने भर का संस्कार लदा है....बस गिनी-गिनाई झपकी लेता है.पूरी मेहनत, पूरी कीमत का रीचार्ज कूपन ..थोड़ा टॉक टाइम , थोडी वैलिडिटी ..यही जिंदगी है अब, शायदजो एस. एम.एस. बनकर रह जाती है......बिना 'नाम' के...