श्रीमती जी_____________एक बार श्रीमती जी कोन जाने कैसे एक नेक विचार आयाकि हमारी कुछ रचनाओं कोटुकडे-टुकडे कर हमारे ही सामनेचूल्हे में जा जलाया .हम सकपकाऐऔर धीरे से बडबडाऐभाग्यवान.......!यह क्या कर डालामेरे जिगर के टुकडे-टुकडे करमेरे ही सामने जला डालातुम्हें मालूम हैकवि दिन रात रोता हैतब जाकर कविता का जन्म होता हैवह तपाक से बोली-भाड़ में जाऐ तुम्हारी यह कविताइस रद्दी को नहीं जलातीतो खाना कैसे बनाती.....?और आप भी आज देख लियातो चिल्ला रहे हैंआपको मालूम है-घर में जब-जबईंधन का अभाव आयामैनेंइन्हीं रचनाओं से काम चलाया.उनकी समझदारी का राजहम आज समझ पाऐफिर...