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बुधवार, 26 दिसंबर 2012

कुंडलियाँ -----त्रिलोक सिंह ठकुरेला

                            (  1  ) सोना तपता आग में , और निखरता रूप . कभी न रुकते साहसी , छाया हो या धूप. छाया हो या धूप , बहुत सी बाधा आयें . कभी न बनें अधीर ,नहीं मन में घवराएँ . 'ठकुरेला' कवि कहें , दुखों से कैसा  रोना . निखरे सहकर कष्ट , आदमी हो या सोना .                    ( 2  ) होता है मुश्किल  वही,...