हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

अच्छा लगता है--------[कविता ]------निर्मला कपिला

कभी कभीक्यों रीता साहो जाता है मनउदास सूना साबेचैन अनमना साअमावस के चाँद सीधुँधला जाती रूहसब के होते भीकिसी के ना होने का आभासअजीब सी घुटन सन्नाटाजब कुछ नहीं लुभातातब अच्छा लगता हैकुछ निर्जीव चीज़ों से बतियानाअच्छा लगता हैआँसूओं से रिश्ता बनानाबिस्तर की सलवटों मेदिल के चिथडों को छुपानाऔरबहुत अच्छा लगता हैखुद का खुद के पासलौट आनामेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तरमेरी कलम और ये कागज़औरमूक रेत के कणों जैसेकुछ शब्दपलको़ से ले करदो बूँद स्याहीबिखर जाते हैँकागज़ की सूनी पगडंडियों परमेरा साथ निभानेहाँ कितना अच्छा लगता हैकभी खुद काखुद के पास लौट ...