गायें कोयलिया तोता मैना बतकही करें ,कोपलें लजाईं , कली कली शरमा रही |झूमें नव पल्लव, चहक रहे खग वृन्द ,आम्र बृक्ष बौर आये, ऋतु हरषा रही|नव कलियों पै हैं, भ्रमर दल गूँज रहे,घूंघट उघार कलियाँ भी मुस्कुरा रहीं |झांकें अवगुंठन से, नयनों के बाण छोड़ ,विहंस विहंस , वे मधुप को लुभा रहीं ||सर फूले सरसिज, विविध विविध रंग,मधुर मुखर भृंग, बहु स्वर गारहे |चक्रवाक वक् जल कुक्कुट ओ कलहंस ,करें कलगान, प्रात गान हैं सुना रहे |मोर औ मराल,लावा, तीतर चकोर बोलें,वंदी जन मनहुं, मदन गुण गा रहे |मदमाते गज बाजि ऊँट, वन गाँव डोलें,पदचर यूथ ले, मनोज चले आरहे ||पर्वत...