हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 1 मई 2011

नया दौर ................डॉ कीर्तिवर्धन

नया दौरनये दौर के इस युग मेंसब कुछ उल्टा पुल्टा है|महंगी रोटी सस्ता मानवजगह जगह पर बिकता है.|कहीं पिंघलते हिम पर्वत तोहिम युग का अंत बताते हैं,|सूरज की गर्मी भी बढ़तीअंत जहाँ का दिखता है.|अबला भी अब बनी है सबलाअंग परदर्शन खेल में|नैतिकता का अंत हुआ हैजिस्म गली में बिकता है.|रिश्तो का भी अंत हो गयाभौतिकता के बाज़ार में,कौन पिता और कौन है भ्रातापैसे से बस रिश्ता है.|भ्रष्ट आचरण आम हो गयारुपया पैसा खास हो गया,मानवता भी दम तोड़ रहीस्वार्थ दिलों में दिखता है.|पत्नी सबसे प्यारी लगतीससुराल भी न्यारी लगती,मात पिता संग घर में रहनाअब तो दुष्कर लगता है....