प्रश्न बन जाए भले जीवन-मरण काप्यार करना तो मगर अवगुण नहीं है !कब गगन ने बैर माना उस नियति सेजो लगाती सूर्य पर स्याही निशा की,कब कली करती निरादर उस किरण काजो गयी तो दे गयी गहरी उदासी,जिन्दगी में दर्द का क्रंदन बहुत हैप्यार का लेकिन अकेला क्षण बहुत हैहारकर सब बाजियां भी प्यार पाएतो मनुज की आत्मा निर्धन नहीं है !इन पहाड़ी चोटियों को क्या पता हैकौन चन्दन आख़िरी होगा बिछौनाबेसगुन आती मुहूरत भाल परजब मौत की जोगन लगा जाती दिठौनायों ख़ुशी से मौत को किसने वरा हैप्यार बिन जीना मगर उससे बुरा हैमौत को भी सरल कर दे कुसुम साप्यार से ज्यादा गुनी मुमकिन नहीं है...