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गुरुवार, 13 मई 2010

अच्छा लगा.........(ग़ज़ल )....श्यामल सुमन जी

हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगाबह रही उल्टी हवा से जूझना अच्छा लगादुख ही दुख जीवन का सच है लोग कहते हैं यहीदुख में भी सुख की झलक को ढ़ूँढ़ना अच्छा लगाहैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदनइत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगारिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह मेंसाथ अपनों का मिला तो घूमना अच्छा लगाकब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयीकुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगाघर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चलीजाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगादे...

नारी........(कविता)............अक्षय-मन

1बन आहुति श्रंगार करूं अपने हाथों अपनी अर्थीहालातों की चिता है और अग्नि बन जाये मज़बूरीआखरी समय है मेरा या है आखरी ये जुल्म तेरादोनों में से कुछ तो हो जीवित हूं पर हूं मरी-मरी२मान रखूं मैं उनका भी जिनसे हुई अपमानित मैंजीत कर भी हारूं पल-पल तुमसे हुई पराजित मैंकिसकी थी किसकी हुई रिश्तों में आज बांटी गईकौन है मेरा मैं किसकी टुकडो में हुई विभाजित मैं !!३मेरी व्यथा भी सुनलो आज खामोश खड़ी हूं कब से मैंमन में सोचूं दिल में छुपा लूं खामोश खड़ी हूं कब से मैंएक...

"प्रेम", "प्रकृति" और "आत्मा"---- {एक चिंतन} ---- सन्तोष कुमार "प्यासा"

सृष्टि अपने नियम पूर्वक अविरल रूप से चल रही है ! सृष्टि अपने नियम पर अटल है, किन्तु वर्तमान समय में मनुष्य के द्वारा कई अव्यवस्थाए फैलाई जा रही है ! मनुष्य सृष्टि के नियमो के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रहा है ! मनुष्य अपनी अग्यांताओ के कारण उन चीज़ों को प्रधानता दे रहा है जिसको "प्रेम, प्रक्रति, और आत्मा" ने कभी बनाया ही नहीं था ! जाती धर्म, मजहब, देश, राज्य, क्षेत्र और भाषा के नाम पर मनुष्य एक दूसरो को मारने पर तुला है !वर्तमान समय में मनुष्य की बुद्धि इतनी ज्यादा भ्रमित हो गई है की वह दो प्रेमियों के प्रेम से ज्यादा अपने द्वारा बनाए गए झूठे आदर्शो...