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गुरुवार, 24 जून 2010

बेटी को भी जन्मने दो -- कविता

कविता
बेटी को भी जन्मने दो
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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मचल रही जो दिल में धड़कन

उसको जीवन पाने दो,
होठों की कोमल मुस्कानें
जीवन में खिल जाने दो।

नन्हा सा मासूम सा कोमल
गुलशन में है फूल खिला,
पल्लवित, पुष्पित होकर उसको
जहाँ सुगन्धित करने दो।

खेले, कूदे, झूमे, नाचे
वह भी घर के आँगन में,
चितवन की चंचलता में
स्वर्णिम सपने सजने दो।

मानो उसको बेटों जैसा
आखिर वह भी बेटी है,
आने वाली मधुरिम सृष्टि
उसके आँचल में पलने दो।

धोखा है यह वंश-वृद्धि का
जो बेटों से चलनी है,
वंश-वृद्धि के ही धोखे में
बेटी को भी जन्मने दो।

प्‍यार.......................... प्रमेन्‍द्र

राहो मे पलके बिछा कर
तेरा इंतजार कर रहा हूँ।
अपनी चाहत को तेरे दिल मे बसा कर
अपना इश्क-ए-इज़हार कर रहा हूँ।

चाहत को अपनी चाह कर भी,
इज़हार नही कर पा रहा हूँ।
तेरी चाहत मे दिल मे दर्द लेकर
अपने को दिल को दर्द दे रहा हूं।

मै तुम्‍हे देखता हूँ
देखता ही रह जाता हूँ।
मै जहाँ जाता हूँ
सिर्फ तुझे ही पाता हूँ।।

मै अपने प्‍यार को खुद मार रहा हूँ ,
चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ।
काश कोई करिश्‍मा हो जाये,
सारे बंधन तोड़ कर हम एक हो जाये।। - प्रमेन्द्र