
माँ को है विरह वेदना और आभास कसक का ठिठुर रही थी वो पर कबंल ना किसी ने उडाया चिंतित थी वो पर मर्म किसी ने ना जाना बीमार थी वो पर बालो को ना किसी ने सहलाया सूई लगी उसे पर नम ना हुए किसी के नयना चप्पल टूटी उसकी पर मिला ना बाँहो का सहारा कहना था बहुत कुछ उसेपर ना था कोई सुनने वाला भूखी थी वो पर खिलाया ना किसी ने निवाला समय ही तो है उसके पास पर उसके लिए समय नही किसी के पास क्योंकि वो तो माँ है माँऔर माँ तो मूरत है प्यार की, दुलार की, ममता की ठंडी...