हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 9 मई 2010

माँ .......(कविता)..............मोनिका गुप्ता

माँ को है विरह वेदना और आभास कसक का ठिठुर रही थी वो पर कबंल ना किसी ने उडाया चिंतित थी वो पर मर्म किसी ने ना जाना बीमार थी वो पर बालो को ना किसी ने सहलाया सूई लगी उसे पर नम ना हुए किसी के नयना चप्पल टूटी उसकी पर मिला ना बाँहो का सहारा कहना था बहुत कुछ उसेपर ना था कोई सुनने वाला भूखी थी वो पर खिलाया ना किसी ने निवाला समय ही तो है उसके पास पर उसके लिए समय नही किसी के पास क्योंकि वो तो माँ है माँऔर माँ तो मूरत है प्यार की, दुलार की, ममता की ठंडी...

माँ..........(कविता)........श्यामल सुमन

मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।तू ही तू है मेरी जिन्दगी।क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।वही ममता बिलखती अभी गाँव में।काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?तेरी गहराइयों में...

कल की तलाश में भटकता आज------ (कविता)------- प्रीती "पागल"

देखा करती हूँ   मै ज़िन्दगी की खूबसूरती रिस्तो की अहमियत, दोस्तों की ज़रूरत मुहब्बत की नजाकत और पेड़ो की डालो से झडते हुए पत्ते मुस्कुराते हुए बच्चे और घूमते युवा उड़ते हुए पंक्षी, और फिर देखा करती हूँ चौराहे पर खड़े वृद्ध की आँखें, देखा करती हूँ मै किताबो की तह्जीने, घरों में संस्कार, परिवारों में मर्यादा, लब्जों में प्यार और फिर "कल की तलाश में भटकता हुआ आज...