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शनिवार, 9 जनवरी 2010

अँधा कौन ? --- (प्रतीक माहेश्वरी)

बचपन उस अंधे को देखकर यौवन हो गया था...जब अंकुर अपनी माँ के साथ मंदिर से बाहर आता तो उसे देख कर विस्मित हो जाता.. उसे दुःख होता...एक दिन वह अपने दुःख का निवारण करने उस अंधे के पास पहुंचा..पहुंचा और बोला - "बाबा, अँधा होने का आपको कोई गम है?"अँधा बोला - "बेटा, यह दुःख बताने का नहीं.. यह आँखे किसी बच्चे की हंसी देखने को तरसती है, एक युवती के लावण्य के सुख को तरसती हैं, एक बुज़ुर्ग के बुजुर्गियत की लकीरें उसके चेहरे पे देखने को तरसती हैं... और हाँ इस धरती.. नहीं नहीं स्वर्ग को देखने को तरसती है.. बहुत दुःख है.. पर किस्मत खोटी है बेटा.. "अंकुर आगे...

नव-प्रभात ---(डाo श्याम गुप्त )

उषा सुनहरी थाल सजा कर ले आयी ,धूप और लोबान पवन ने महकाए,घुँघरू नूपुर सी आवाजें खगकुल कीकल कल सरिता करे वन्दना हरषाए ;खोला के पट स्वागत में उषा पुजारिन के ,मंदिर के घंटों ने दिव्य गीत गाये;भुवन भास्कर नव प्रहात लेकर आये...