
देखता लोगों को करते हुए अर्पित फूल और मालादूध और मेवाऔर न जाने क्या-क्याहाँ तब जगती है एक उम्मीद कि शायद तुम होपर जैसे ही लांघता हूँ चौखट तुम्हारातार-तार हो जाता है विश्वास मेरा टूट जाता है समर्पण तुम्हारे प्रतिजब देखता हूँ कंकाल सी काया वालीउस औरत कोजिसके स्तनों को मुँह लगायेउसका बच्चा कर रहा था नाकाम कोशिशअपनी क्षुधा मिटाने कोहाँ उसी चौखट के बाहरलंबी कतारे भूखे और नंगो कीअंधे और लगड़ों की.....वह जो अजन्मीखोलती आंखे कि इससे पहलेदूर...