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रविवार, 16 मई 2010

स्पेस-.............. कहानी.................मानोशी जी

एक प्रवासी लेखकों की किताब के लिये, कहानी लिखने का हुक्म पूरा करने ये कहानी लिखी गई। प्रवास की सॆटिंग में लिखी कहानी-स्पेस"बड़े दुख से गुज़री हो तुम, है न? सच बड़ा कठिन समय रहा होगा"। उसे नहीं चाहिये थी सहानुभूति। साइको थेरैपी के लिये कई जगह जा चुकी थी वो। " क्या आप मेरी मदद कर सकती है? मुझ आगे बढ़ना है। मैं रोने नहीं आई हूँ यहाँ।" ये कह कर हर बार वापस आ गई थी वो। क्या कोई नहीं था जो उसकी मदद कर सकता था? उसके दर्द को समझ सकता था? आज डा. जोन्स के साथ थी अपाइंटमेंट, थेरैपी की। फिर एक बार कहानी बयान करनी होगी....ज़ुकाम से सर भारी था। दफ़्तर नहीं जाना चाहती...

टुकड़े टुकड़े ख्वाब ....(कविता)............संगीता स्वरुप

गर्भ -गृह से आँखों की खिड़की खोल पलकों की ओट से मेरे ख़्वाबों ने धीरे से बाहर झाँका कोहरे की गहन चादर से सब कुछ ढका हुआ था .धीरे धीरे हकीक़त के ताप ने कम कर दी गहनता कोहरे की और ख़्वाबों ने डर के मारे बंद कर लीं अपनी आँखे .क्यों कि -उन्हें दिखाई दे गयीं थी एक नवजात कन्या शिशु जो कचरे के डिब्बे में निर्वस्त्र सर्दी से ठिठुर दम तोड़ चुकी थी .******************************...

नव जीवन ********* {कविता} ********** सन्तोष कुमार "प्यासा"

ओर से छोर तक बादलों का विस्तार ललित फलित मनभावन संसार गूँज रहा दिग-दिगंत तक कोयल का मधुर स्वर बह रही दसो दिशाओं में खुशियों की लहर हो रहा आनंद का उदगम, ये अदभुत क्षण है अनुपम आशाओं के गगन से सुधा रही बरस तृप्त हुए सभी, चख कर ये सरस रस टूट रहा जाति, पाति का झूठा भ्रम उदित हुआ सूर्य लेकर नव जीवन   सौहार्द की बूंदों में, मिलकर भीगे...