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रविवार, 13 सितंबर 2009

हिन्दी साहित्य मंच द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता का सफल समापन हो गया है । इस प्रतियोगिता को कराने के पीछे प्रमुख उद्देश्य - लोगों की हिन्दी साहित्य के प्रति किस तरह की सोच और आकर्षण है । प्रतियोगिता का विषय था - " हिन्दी साहित्य का बचाव कैसे ? " । परन्तु दुखद बात यह रही की प्रतिभागी इस विषय से पूरी तरह अनभिज्ञ रहे । कहिं न कहीं वे अपने विषय से पूरी तरह बहके से दिखे । ऐसे में विजेता का चुनाव करना बहुत ही कठिन हो जाता है । अतः निबंध प्रतियोगिता में कुल तीन ही प्रतिभागी के निबंध को पुरस्कार हेतु चुना गया । विजेता के नाम - राजेश कुशवाहा डाo...

हिन्दी पखवाड़े में आज का आखिरी व्यक्तित्व ----"फणीश्वर नाथ रेणु"

हिन्दी साहित्य मंच " हिन्दी दिवस " के उपलक्ष्य में हिन्दी पखवाड़ा मना रहा है । और साहित्य से जुड़े हुए साहित्यकारों के बारे में एक श्रृंखला चला रहा था । इस श्रृंखला की आज आखिरी कड़ी प्रस्तुत की जा रही । आप सभी को हिन्दी साहित्य मंच का प्रयास पसंद आया । आप सभी ने हमारा उत्साह अपने विचारों से बढ़ाया इसके लिए हिन्दी साहित्य मंच आप सभी के प्रति आभार प्रकट करता है । आप सभी को हिन्दी दिवस की आगामी शुभकामनाएं । हिन्दी के विकास के लिए अपना प्रयास जारी रखें । फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म ४ मार्च, 1921 को बिहार के अररिया जिले के फॉरबिसगंज के निकट औराही हिंगना...

कहानी कमली की - कहानी ( नीशू तिवारी की )

कमली आज बिल्कुल भी बोल नही रही थी कयों कि उसे मार पड़ी थी ,उसने घर का काम जो पूरा नही किया था।कमली के लिए ये कोई नयी बात नही थी , दिन या दो दिन में मार पड़ ही जाती थी बेचारी अपना गुस्सा चुप रहकर ही निकालती थी बिना किसी से बात किये हुए। बचपन से ही अभागी रही थी , पैदा होते ही मां चल बसी और बाप का कुछ पता ही नही बचपन क्या होता है पता ही नही? रहने के लिए उसेमिला विशाल आकाश और खेलने के लिए प्रकृति की गोद। दुखमय जीवन में खुश रहने के सारे तरीके सीख लिये थे कमली ने। हमेशा छोटी-२ बातों पर मुस्कुराती , सब की चहेती थी, पास की बुआ जी बहुत मानती थी कमली...

"आँख में चुभने लगा है"- गजल (जतिन्दर परवाज की )

शजर पर एक ही पत्ता बचा हैहवा की आँख में चुभने लगा हैनदी दम तोड़ बैठी तशनगी सेसमन्दर बारिशों में भीगता हैकभी जुगनू कभी तितली के पीछेमेरा बचपन अभी तक भागता हैसभी के ख़ून में ग़ैरत नही परलहू सब की रगों में दोड़ता हैजवानी क्या मेरे बेटे पे आईमेरी आँखों में आँखे डालता हैचलो हम भी किनारे बैठ जायेंग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा...