सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।। न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,दशरथ, जनक से ज्यादा लाचार हो गये हैं।सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट...