सफर के साथ मैंया फिर मेरे साथ सफरकुछ ऐसा रिश्ता बन गया थाकब, कहाँ, और कैसे पहुँच जाना हैबताना मुश्किल थाऐसे ही रास्तों पर कई जाने पहचाने चहरे मिलतेऔरफिर वो यादें धुंधली चादर में कहीं खो जातीमैं कभी जब सोचता हूँ इन लम्हों को तोयादें खुद ब खुद आखों में उतर आती हैं वो बस का छोटा सा सफरअनजाने हम दोनोंचुपचाप अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे थेवो मेरे सामने वाली सीट पर शांत बैठी थीउसके चेहरा न जाने क्यूँ जाना पहचाना सा लगाऐसे मेंहवा के एक झोंके नेकुछ बाल उसके चेहरे पर बिखेरे थेवो बार-बारअपने हाथों से बालों को प्यार से हटाती थीलेकिन कुछ पल बीतने के बादवो...