हम खुद से अनजान क्यूँ हैज़िन्दगी मौत की मेहमान क्यूँ हैजिस जगह लगते थे खुशियों के मेलेआज वहां दहशतें वीरान क्यूँ हैजल उठता था जिनका लहू हमें देख करन जाने आज वो हम पर मेहेरबान क्यूँ हैजहाँ सूखा करती थी कभी फसलेवहां लाशों के खलिहान क्यूँ हैकभी गूंजा करती थी घरों में बच्चों की किलकारियांअब न जाने खुशियों से खाली मकान क्यूँ हैआखिर कौन कर सकता है किसीकी तन्हाई को दूरसूरज,चाँद और हजारों तारें है मगरतन्हा-तन्हा आसमान क्यों है....