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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

इन लहु को बहुत दुःख है--- (ओशिन कुमारी )

लाशें जो बिछी हैं इंसानों की,
दिल दहल जाय ऐसे दृश्यों की 
आखिर क्यों इंसानों में भेद है ऐसा ,
क्यों कौम -संप्रदाय की दुरी है ऐसा ,
ये नजारा तो देखो ,
देखकर जरा गौर करो,
ये लहु मिलने चले हैं  ऐसे ,
जैसे चले हैं बरसों  पुरानी
दूरियां मिटाने को  l

इन लहु  को बहुत दुःख है कि
इंसान, इंसान को न पहचानता ,
ये क्यों है ऐसी खाई ,
मनुष्य से मनुष्यता के अंत का l

इन लहु को बहुत दुःख है कि
काश हमें वह शक्ति होता,
कि अगर यह काम हमसे हो जाता,
तो मिटा देते ये फासला,
इन्सानों के दिलों दिमाग का  l

 इन लहु को बहुत दुःख है कि
इंसान, ईश्वर ने बनाया तुझे ,
सर्वश्रेष्ठ - संपन्न   बनाया तुझे,
यह कमी क्यों रह गयी तुझमें ,
बस खुद को पहचानने का
ये लहु कहती है कि
आज हमारा मिलान होगा ऐसा ,
जैसे रग - रग में  घुल जाने का ,
 इंसान के दिल तो न मिल पाये  मगर,
पर आज देना है , पैगाम ये मुहब्बत का  l 
हमें डर है कि ये  तपती धरती सोख लेगी मुझे ,
ये सूरज कि तेज तपन विलीन कर देगी मुझे ,
फिर भी बेतहाशा मिलने चले हैं हम ,
जूनून ये मुहब्बत का कभी न होगा कम,
परन्तु
यह शायद पहली बार हुआ  है ,
ये धरती, ये आसमां , ये सूरज, ये  चन्द्रमाँ,
आज इनकी भी जोर है हमें मिलाने का l

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मैंने भी प्यार किया था

जी हां हमको भी प्यार हुआ था,

उम्र 15  साल।
कद छोटा, रंग काला और थोड़ा मोटा,
जब पड़ा था इश्क का अकाल।।
जब फिल्मो के हीरो अमिताभ,
और विलेन था सकाल।
और जब मै नाई से,
कटवा रहा था अपने बाल।।
जब मै बाल कटवा रहा था,
तभी वहा बवाल।
नाई थोड़ा घबराया,
बाल की जगह कट गया मेरा गाल।।
मै भी जिज्ञासा वस बाहर आया,
तो देखा नया बवाल।
दो प्रेमी मित्र मना रहे थे,
नया-नया साल।।
दोनों ने एक दुसरे को कसके पकड़ा था,
तब मुझे आया एक ख्याल।
लोगो ने किया था,
उनको देखकर लोगो ने किया था बवाल।।
लेकिन उस बवाल को देखकर,
मेरे मन में आया प्यार का ख्याल।
मैंने भी प्यार करने की ठानी,
लेकिन मेरे मन में आया एक सवाल।।
मैंने अपने स्कूल में ही,
कर दिया बवाल।
स्कुल में देखा एक नया माल।।
मैंने फ्लट किया,
बड़े सुन्दर है आपके बाल ।
लगते है हमेशा,
संसद में लटके हुए लोकपाल।।
मैंने आगे झूठ बोला,
आपके सुन्दर और फुले हुए गाल।
कराते है मेरे मन में हमेशा,
कश्मीर जैसा बवाल।।
मैंने किया प्रेम का इजहार,
तो उसने कर दिए मेरे गाल लाल।
फिर वहा खड़े लोगो ने पिटा,
फिर उसने पूछा एक सवाल।।
वैसे तुमने किया क्या था,
जो उसने किया बवाल।
जो इन बेरहम लोगो ने कर दिया,
तेरा यह बुरा हाल।।
मैंने उन्हें बताया,
करना चाहा प्यार कर दिया यह हाल।
अरे अभी तेरी उम्र ही क्या है,
खुद को पागल बनने से  संभाल।।

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

युवाओं का गैजेट प्रेम

सुबह हो या शाम,
हर जगह दीखता है .
हर गली, नुक्कड़ और चौराहो,
पर बिकता है .

कुछ छोटा सा या बड़ा ,
आकर्षित करता हुआ.
सभी का मनोरंजन,
करता है.

हम (युवाओं) के जीवन,
के अंग इस प्रकार है.
एक छोटा परन्तु अद्भुत,
वस्तु मोबाईल,
जो आक्सीजन का कार्य करता है.

दिन में कई बार,
फिल्मी गीतो के साथ बजता है.
अगर थोड़ी देर के लिए भी,
गम हो जाए तो,
ह्रदय बहुत तेजी से धड़कता है.

दूसरे प्रमुख अंग को हम,
कंप्यूटर कहते है.
यह हमारे जीवन में,
रक्त का कार्य करता है.

सभी बच्चो की जिज्ञासा,
का हल इंटरनेट करता है.
और दैनिक जीवन में,
विटामिन और प्रोटीन का कार्य करता है.

बच्चो में बुक नामक,
रोग मिले या न मिले,
फेसबुक नामक,
डायबटीज जरूर मिलता है.

जो पहले जिज्ञासा,
से शुरू होकर बढती जाती है.
और यह निरंतर बढता जाता है.

उपर्युक्त बताये गए सभी,
तत्व महत्वपूर्ण है.
सवस्थ जीवन के लिए इनका,
नियमित और सही मात्र में,
सेवन जरूरी होता है. 

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

आज का प्रेम

मनुष्य (इस संसार का सबसे अद्भुत प्राणी),
जिसका प्रेम प्रत्येक छण !
कलेंडर से जल्दी बदलता है,
और समय से भी तेज चलता है !!

औरत (संसार की सबसे रहस्यमय प्रजाती),
को देखते ही प्रेम में पड़ जाता है !
और फिर जनसंख्या और महंगाई,
से भी तेज बढता जाता है !!

पहले ही दिन अट्रैक्सन होता है,
फिर कनेक्सन होता है !
दूसरे ही दिन कन्वेंसन होता है,
और अंत में इस प्रेम नामक दवा,
की एक्सपायरी डेट ख़त्म हो जाती है !!

और फिर मनुष्य (मोबाईल फोन),
से औरत नामक सीम निकाल दी जाती है !
और फिर सस्ती, टिकाऊ  और सुन्दर ऑफर,
वाले सिम (महिला) की तलाश शुरू हो जाती है !!

और कभी - कभी तो यह,
'शादी' नामक ज्वार तक पहुँच जाती है !
और फिर 'तलाक' नामक भाटा पर,
आकर ख़त्म होती है !!

सोमवार, 24 मार्च 2014

वीर जवानों को नमन

कपकपाती ठण्ड में
जो कभी ठहरा नहीं
चिलचिलाती धूप में
जो कभी थमा नहीं

गोलियों की बौछार में
जो कभी डरा नहीं
बारूदी धमाकों से
जो कभी दहला नहीं

अनगिनत लाशों में
जो कभी सहमा नहीं
फर्ज के सामने
जो कभी डिगा नहीं

आंसुओं के सैलाब से
जो कभी पिघला नहीं
देश के आन ,मान ,शान में
मिटने से जो कभी पीछे हटा नहीं

ऐसे वीर जवानों को
शत -शत नमन ।।


रविवार, 2 फ़रवरी 2014

मैं नहीं चाहता प्रिय-- राघवेन्द्र त्रिपाठी "राघव"

 इस अनजाने अपनेपन की प्रिय,मैं नहीं चाहता कोई वर्णन कोई परिभाषा हो ||
                       मेरे जीवन की सुप्त चेतना ,
                        तेरे नयनो में होती विम्बित |
                        मेरा पथ आलोकित करती ,
                        तेरे संग की मीठी स्मृति ||
इससे ज्यादा इस सुप्त ह्रदय में मैं नहीं चाहता बाकी कोई भी अभिलाषा हो ||
                         बस मेरे मानस अम्बर पर,
                         काले मेघों सी छा जाना ||
                          जीवन के मेरे मरू-थल में ,
                         इक बार प्रिये तुम आ जाना ||
ये दग्ध ह्रदय अपना , मैं नहीं चाहता  , प्रिय ,चिर विरही चातक प्यासा हो ||
                          मेरे मानस आले में तुम हो,
                           प्राणों में प्रिय तुम्ही शेष ||
                          है अंतिम बार यही इच्छा ,
                         देखू जी भर कर तुम्हे निमेष||
हो ध्येय पूर्ण यह जीवन का,मई नहीं चाहता बाकि कोई भी इच्छा,आशा हो ||
                         मौन अधर के प्रश्न सुन सको,
                         मूक नयन से प्रत्युत्तर दो प्रिय||
                        इस पथरीले पथ पर जीवन के ,
                       आकर मुझको सम्बल दो प्रिय ||
 

सोमवार, 23 सितंबर 2013

एक चिट्ठी मिली ..... मेरे यार की --- -(लक्ष्मी नारायण लहरे )

बरसों की खबर -खबर बनकर रह गयी 
गलियों की चौड़ाई सिमट गयी 
उपाह-फोह की आवाज कमरे में दम तोड़ दी 
बदल ,गयी लोग -बाक की भाषा 
नजरें बदल गयी नया बरस आ गया 
ख़बरों में नई उमंग -तरंग नए संपादक आ गए 
गलियां में  जो हवा बह रही थी 
ओ हवा प्रदूषित हो गयी 
प्यार करने वाले पथिक 
अपनी राह बदल दी 
लोगों का भ्रम जब टूटा 
पथिक की नई कहानी बन गयी 
सच है ,भ्रम का कोई पर्याय नहीं होता 
मृत्यु निश्चित है पर 
उस पर किसी का विचार नहीं जमता 
जीने की कवायद जारी है 
कोई प्रेम से ,
नफरत नहीं करता 
समाज और परिवार का कोई नाम बदनाम नहीं करता 
लोग हंसते 
इसलिए  परिवार प्रेम पर विश्वाश नहीं करता 
मेरे यार की खबर है .....
एक चिट्ठी मिली है  ..
प्रेम पत्र ,
नहीं -नहीं 
बधाई -पत्र  है 
नए वर्ष की 
लिखा है ....
दोस्ती करके किसी को धोखा ना देना 
दोस्त को आंसू का तोहफा ना देना 
कोई रोये आपको याद करके ...
जिंदगी में किसी को ऐसा मौका ना देना 
नव वर्ष हो मंगलमय ! 
ऐसा सन्देश हर अंतिम ब्यक्ति को लिखना ...

मंगलवार, 7 मई 2013

माँ

माँ शब्द ही एक सुन्दर एहसास है
ममता, उदारता, नम्रता
प्रेम और सम्मान का !

आशीर्वाद , निर्मलता
ईश्वर और उसके विश्वास का !!

बेटा सदा माँ का लाडला
सुन्दर और सुशील
और कोमल होता है !

सोमवार, 21 जनवरी 2013

नारी शक्ति

अब नारीयो ने भी लीया साहस से काम !
अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !!
नारी कभी बनती है जननी कभी माता !
पुत्र बनता है कुपुत्र लेकिन माता नही है कुमाता !!
सिर्फ नीर्बल नही क्षत्राणी है लक्ष्मी बाई और चादँबीबी है !
शिवा जी और अकबर जैसे की माता और बीबी है !!
अब शिक्षा मे अव्वल और खेल मे आगे !
अब उनके दुश्मन भी रण छोण के भागे !!
अब सीमा पर करती है रक्षा !
अब दहेज लेने वाले मागे भीक्षा !!
अब समाज मे रखती है स्थान !
और सब करते है सम्मान !!
अब अंतरिक्ष मे भरती है उङान !

शनिवार, 12 जनवरी 2013

मां

 ममता और सौहार्द से बनी हुयी है मां !
कोई कहे कुमाता कोई माता लेकिन है मां !!
जिसके स्पर्श भर से बेता प्रसन्न हो उठता है !
जिसके उठने से ही सुरज भी उठता है !!
मां को देखकर बच्चा पुलकीत हो उठता है !
बच्चो को पाकर मां का रोम-रोम खिल उठता है !!
यौवन मे भी मां को बेटा लगता प्यारा !
बेटा समझ न पाता मन का है कच्चा !!
सारी दुनिया समझे उसे घोर कपुत !
मां को लगता बेटा सच्चा,वीर,सपुत !!
मां शब्द मे है ममता का एह्सास !
बरसो है पुराना मां का इतिहास !!

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

प्रकृति

रात की निर्जनता का सृजन कोई बतला दे !
इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !!

सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला दे !
इस दुनिया के निर्मम जीवन के अन्त कोई बतला दे !!

प्रेम और घृणा के खेल का अन्त कोई बतला दे !
रात और दिन के मिलन का अन्त कोई बतला दे !!

इस दुनिया के निर्मम रीति रिवाजो का अन्त कोई बतला दे !
इन लोगो के लोभ का अन्त कोई बतला दे !!

मानवता और निर्दयता के संघर्ष का अन्त कोई बतला दे !
मेरे इस कटु जिवन का अन्त कोई बतला दे !!

सुरज चांद सितारो का अन्त कोई बतला दे !
सुरज की चुभती किरणो का अन्त कोई बतला दे !!

मै और तु के संघर्ष का अन्त कोई बतला दे !
मेरे इस प्रकाश खोज का अन्त कोई बतला दे !!

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

नारी (एक बेबसी)

जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन सब थे कटु वाचाल !!
वह कली सी बढ्ने लगी !
सबको बोझ सी लगने लगी !!
वह सबको समझ रही भगवान !
लेकीन सब थे हैवान !!
वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर !
लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !!
सबने कीया उसका ब्याह !
वह हो गयी काली स्याह !!
ससुर ने मागा दहेग हजार !
न दे सके बेचकर घर-बार !!
सास ने कीया अत्याचार !
वह मर गयी बिना खाये मार !!
पती ने ना दीया उसे प्यार !
पर शिकायत बार-बार !!
किसी ने ना दिखायी समझदारी !
यही है औरत कि बेबसी लाचारी !!
ना मीली मन्जिल उसे बन गयी मुर्दा कन्काल !
सबने दिया अपमान उसे यही बन गया काल !!
यही है नारी कि बेबसी यही है नारी की मन्जिल !
यही हिअ दुनीय कि रीत यही है मनुष्य का दिल !!
मै दुआ करता हू खुदा से किसी को बेटी मत देना !
यदी बेटी देना तो इन्सान को हैवनीयत मत देना !!

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

शकुन्तला


दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा !
दुश्यन्त तुम्हे भुल जायेगा शकुन्तला !!
शकुन्तला इस बात से थी अज्ञात !
की उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!
अनुसुइया और अनुप्रिया ने कराया उसे ज्ञात !
यह सुनते ही उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!
वह दौङी और दुर्वाशा को कीया चरणस्पर्श !
वह अपनी जिन्दगी से कर रही थी संघर्ष !!
फिर शकुन्तला ने की छमा याचना !
दुर्वाशा ने भी की उसके लिये मंगल कामना !!
मेरे कण्ठो से जो तुम्हारी जिन्दगी मे आयी बाढ !
उसे दुर करेगी मीन और मुद्रीका की धार !!
जब शकुन्तला के वियोग मे पेङ पौधे सुख जाये !
तथा मृग और हीरन आसु खुब बहाये !!
पेङो को ऐसा लगता मानो अभी गिर जायेंगे !
जीवो को ऐसा लगता मानो अभी मिट जायेंगे !!
माता-पिता रोकर आंसु खुब बहाये !
पशु-पक्षी भी दुर्वाशा को कोसते जाये !!
विश्वामित्र और मेनका का रोकर बुरा हाल !
नदी और बादलो के लिये बन गया काल !!
शकुन्तला कही और मन कही और !
ऐसा लगता जैसे रस्सी के दो छोर !!
दुर्वाशा अपने इस शाप पर पछताये !
तथा अपने मन को झुठी दिलासा दिलाये !!
कष्ट के इस दिन मे भगवान ने ना किया रहम !
लोगो के लिये छ्ण-छ्ण बन रहा था कहर !!
सुहावना मौसम भी लग रहा था ज्वाला !
सभी प्राणियो का बदन पङ गया था काला !!
दुर्वाशा से शकुन्तला विनती कर रही बार-बार !
आखो से अश्रु मोती गिर रहे हजार !!
जाते समय शकुन्तला की दुःखद थी विदायी !
अनुसुइया और प्रियंवदा रोते हुये आयी !!
जब शकुन्तला पहुच गयी मझधार !
प्राणी उन्हे देखे व्याकुल हो बार-बार !!
लोगो से ले विदायी गुरु शिष्यो के साथ !
शकुन्तला पहुच गयी दुष्यंत के पास !!
दुष्यंत के राज्य मे पहुचकर शकुन्तला हर्षित हो उठी !
दुष्यंत के व्यवहार से शकुन्तला कुलषित हो उठी !!
दुष्यंत ने शकुन्तला को पहचानने से किया इनकार !
शकुन्तला के जिवन मे हो गया अंधकार !!
शकुन्तला मन मे हो रही थी प्रसन्न !
दुष्यंत के व्यवहार से हो गयी सन्न !!
शकुन्तला ने गुहार लगायी बारम्बार !
लेकीन दुष्यंत ने पहचानने से किया इनकार !!
शकुन्तला मन ही मन भाग्य को रही कोश !
इस निष्ठुरता से उसके उङ गये होश !!
उपेक्षित हो वह नगर से चली !
डगमगाते हुये अनजान पथ पर चली !
शकुन्तला को देख महर्षी का ध्यान हुआ भंग !
वह शकुंतला को देखकर रह गये दंग !!
महर्षी ने आने का प्रयोजन पुछा चकीत होकर !
शकुन्तला ने सब हाल कहा रो-रोकर !!
महर्षी भी बाते सुनकर गये पसीज !
महर्षी का करुण हृदय गया रक्त से भीग !!
उन्होने शकुन्तला को दिया खुब प्यार !
शकुन्तला का हृदय हुआ कृतज्ञ हुआ बार-बार !!
शकुन्तला आश्रम के प्यार मे खो गयी !
मानो उनकी आत्मा दुष्यंत के प्रती सो गयी !!
वह दुष्यंत को एकदम गयी भुल !
फिर दुष्यंत को मालुम हुइ अपनी भुल !!
जब मुद्रिका आयी उनके हाथ !
तब मालुम हुई उन्हे सारी बात !!
अपनी बाते सोचकर हो रहा था उन्हे दुःख !
किसी ने नही देखा था ऐसा मलीन मुख !!
ग्लानी से उनका मुख पङ गया था काला !
दर्द ऐसे हो रहा था जैसे चुभ रहा हो भाला !!
क्रोध से उन्होने दिया सैनिको को आदेश !
शकुन्तला को ढुढो चाहे जिस देश !!
खुद भी ढुढने निकल गये दुष्यंत !
एक-एक पल ऐसा लग रहा था जैसे जिवन का अंत !!
 उधर शकुन्तला ने वर्षो बिता दिया !
और वही एक नन्हे शिशु को जन्म दिया !!
भरत आश्रम मे बढने लगा !
शकुन्तला का मन हर्षीत होने लगा !!
शकुन्तला और भरत का सभी करते थे सम्मान !
धिरे-धिरे भरत का बढने लगा मान !!
दुष्यन्त की सेना खोजती रह गयी !
शकुन्तला स्वप्न मे सोती रह गयी !!
दुष्यन्त भी थक हारकर खोजने चल पङे !
शकुन्तला की याद मे दुष्यन्त रो पङे !!
खोजते-खोजते दुष्यन्त महर्षी के आश्रम पहुच गये !
वहा के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर दुःख भुल गये !!
दुष्यन्त ने द्वार पर भरत को देखा !
भरत ने भी उन्हे आश्चर्य चकित हो देखा !!
दुष्यन्त ने पुछा पिता का नाम !
चकित हो उठे सुनकर अपना नाम !!
दुष्यन्त यह देख हर्षीत हो गये !
उनके आंखो से अश्रु बिन्दु गिर गये !!
दुष्यन्त ने शकुन्तला को देखा !
शकुन्तला ने भी जैसे स्वप्न था देखा !!
शकुन्तला दुष्यन्त से कुछ ना बोल सकी !
ओठ फङफङाकर भी मुह ना खोल सकी !!

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

कभी सोचा ना था


कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन कभी टुटा नही !!
प्यार देता रह गया हाथ आया कुछ नही!
मौत के बाद साथ आया कुछ नही !!
यहा हर तरफ है दर्द, नफरत प्यार पाया कुछ नही !
लोग की इस सोच का अंदाज आया कुछ नही !!
मै प्यार करता हू सभी से अपना-पराया कुछ नही !
मै बनू सच्चा मनुष्य है इतर सपना कुछ नही !!
लोगो के मै काम आंऊ और इच्छा कुछ नही !
प्यार मै दू सभी को नफरत मै करू नही !!

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मेरा परिचय

पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से !
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग हूं !
मगर मै सोचता कि दुनिया मुझसे अलग है !!
पता नही क्यूं अब ताने सुन कष्ट नही होता !
पता नही क्यूं अब तानो का असर नही होता !!
पता नही क्यूं लोगो को है मुझसे है शिकायत !
पता नही क्यूं बिना बात के दे रहे है हिदायत !!
पता नही क्यूं लोगो की सोच है इतनी निर्मम !
पतानही क्यूं इस दुनिया की डगर है इतनी दुर्गम !!

बुधवार, 2 जनवरी 2013

हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये, 
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग तो अब न जाने, 
क्या-क्या कहने लगे !                                                                
आखो से अब आसु,
बहने लगे !
लोगो कि चंद बाते पुकारे मुझे,
पर ये कटु जहर हम सहने लगे !
लोग कहते गये और हम सहते गये,
और जिंदगी की ये जंग लङते गये !

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

भ्रष्टाचार

यहा हर तरफ है बिछा हुआ भ्रष्टाचार !
हर तरफ फैला है काला बाजार !!
राजा करते है स्पेक्ट्रम घोटाला !
जनता कहती है उफ मार डाला !!
लालू का चारा कलमाणी का राष्ट्रमण्डल !
जनता बेचारी घुट रही है पल-पल !!
यहा होते है घोटाले करोणो मे !
यहा फलता है भ्र्ष्टाचार नेताओं के पेङो मे !!
मेरी दुनिया का इतिहास है ये,चोरी,दंगा,फसाद है ये !
बलात्कार,जुर्म और शोषण,मनुष्यो का इतिहास है ये !!
हत्या,फिरौती और लूट दुनिया का इश्तहार है ये !
नेता,डीलर और किलर रीश्तो मे रीश्तेदार है ये !!
और हमारे नेता कांट्रेक्ट किलर के बाप है ये !
मंच और भाषण मे फिल्मो के अमिताभ है ये !!
लाखो नही करोणो नही अरबो का व्यापार है ये !
शान्ति और शौहार्द नही नताओ का जंगलराज है ये!!
स्वीस बैंक मे पङा रुप्पया नेताओ की शान है ये !
भ्रष्ट्राचार से घिरा भ्रष्ट समाज है ये !!
नेता नोटो की माला पहने मरे ये जनता बेचारी !
नेता करता बङा घोटाला मरे चाहे दुनिया सारी !!
चुनाव के पहले प्यार दिखाये !
चुनाव के बाद तलवार दिखाये !!
ये है घर के भेदी लूटे हिन्दुस्तान को !
जाती,धर्म के नाम पर बाते इन्सान को !!
चुनाव के पहले करते रहते भैया भैया !
चुनाव के बाद इन्के लिये सबसे बङा रुप्पया !!
भ्रष्ट्राचार हो गयी है इस देश की बिमारी !
जिसमे पिस रही निर्दोष जनता बेचारी !!

शुक्रवार, 18 मई 2012

गर्मी (कविता) सन्तोष कुमार "प्यासा"



(विभिन्न रंगों से रंगी एक प्रस्तुति, हालिया समय का स्वरूप, गर्मी का भयावह रूप,)

जालिम है लू जानलेवा है ये गर्मी


काबिले तारीफ़ है विद्दुत विभाग की बेशर्मी


तड़प रहे है पशु पक्षी, तृष्णा से निकल रही जान


सूख रहे जल श्रोत, फिर भी हम है, निस्फिक्र अनजान


न लगती गर्मी, न सूखते जल श्रोत, मिलती वायु स्वक्ष


गर न काटे होते हमने वृक्ष


लुटी हजारों खुशियाँ, राख हुए कई खलिहान


डराता रहता सबको, मौसम विभाग का अनुमान


अपना है क्या, बैठ कर एसी, कूलर,पंखे के नीचे गप्पे लड़ाते हैं


सोंचों क्या हाल होगा उनका, जो खेतों खलिहानों में दिन बिताते है


अब मत कहना लगती है गर्मी, कुछ तो करो लाज दिखाओ शर्मी


जाकर पूंछो किसी किसान से क्या है गर्मी....

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

एक चिट्ठी मिली ..... मेरे यार की ---(लक्ष्मी नारायण लहरे )

बरसों की खबर -खबर बनकर रह गयी
गलियों की चौड़ाई सिमट गयी
उपाह-फोह की आवाज कमरे में दम तोड़ दी
बदल ,गयी लोग -बाक की भाषा
नजरें बदल गयी नया बरस आ गया
ख़बरों में नई उमंग -तरंग नए संपादक आ गए
गलियां में जो हवा बह रही थी
ओ हवा प्रदूषित हो गयी
प्यार करने वाले पथिक
अपनी राह बदल दी
लोगों का भ्रम जब टूटा
पथिक की नई कहानी बन गयी
सच है ,भ्रम का कोई पर्याय नहीं होता
मृत्यु निश्चित है पर
उस पर किसी का विचार नहीं जमता
जीने की कवायद जारी है
कोई प्रेम से ,
नफरत नहीं करता
समाज और परिवार का कोई नाम बदनाम नहीं करता
लोग हंसते
इसलिए परिवार प्रेम पर विश्वाश नहीं करता
मेरे यार की खबर है .....
एक चिट्ठी मिली है ..
प्रेम पत्र ,
नहीं -नहीं
बधाई -पत्र है
नए वर्ष की
लिखा है ....
दोस्ती करके किसी को धोखा ना देना
दोस्त को आंसू का तोहफा ना देना
कोई रोये आपको याद करके ...
जिंदगी में किसी को ऐसा मौका ना देना
नव वर्ष हो मंगलमय !
ऐसा सन्देश हर अंतिम ब्यक्ति को लिखना ...


रविवार, 1 अप्रैल 2012

जिहाद के मायने धर्मयुद्व नहीं---अतुल चंद्र अवस्थी

तुम्हारे लिए जिहाद के मायने धर्मयुद्व है,

लेकिन धर्म की परिभाषा क्या जानते हो ।

जिसकी खातिर तुमने इंकलाब का नारा बुलंद किया,

तोरा बोरा की पहाडियों में खाक छानते रहे,

09/11 की रात अमेरिका को खून से नहलाया,

आतंक का ऐसा पर्याय बने कि,

यमराज को भी पसीना आया।

लेकिन क्या जिहाद की भाषा समझ सके;

जिस जिहाद की खातिर लाखों परिवारों की खुशियां छीनी।

मासूमों के हाथों में किताब की जगह एके 47 थमा दी।

गली मोहल्लों चौक चौराहों पर तुमने खेली खून की होली।

धरती माता के सीने को किया गोलियों से छलनी।

देश की धड़कन मुंबई को किया लहूलुहान।

लेकिन अंजाम क्या हुआ,

तुमने भोगा सारी दुनिया ने देखा।

जिस पर था तुम्हे नाज उन्होने ही मुंह मोड़ लिया।

कल तक जो तुम्हारे आतंकी इरादों को देते थे हवा।

उन्होने ही एबटाबाद में तुम्हारी मौजूदगी से किनारा कस लिया।

अंतिम समय में फिर धरती मां ही तुम्हारा सहारा बनी।

वही धरती मां जिसकी छाती पर तुमने पल-पल गोलियां बरसाई।

मां और बेटे के रिश्ते को जिंदा रहते कलंकित किया।

लेकिन अमेरिकी आपरेशन में तुम्हारी आंख बंद होने के बाद।

उसी धरती मां ने तुम्हे अपने लहूलुहान आंचल में सहेज लिया।

इसलिए क्यूंकि तुम भी उसके जिगर के टुकडे़ थे।

मां को खून से नहलाने के बाद भी उसे तुमसे न गिला था न शिकवा।

क्योंकि मां तो मां होती है।

जिहाद----2

तुमने बारुद के ढेर पर मासूमों के अरमान सुलगाए।

जिहाद के नाम पर उनमें नफरत की भावना भरी।

अपनी धरती मां के खिलाफ ही उकसाया।

सभ्य नागरिक से उन्हे दानव बनाया।

तब शायद तुम्हे नहीं पता था कि,

पिता के कर्मो का फल पु़त्र को भुगतना पड़ता है।

बेटा पिता के छोटे बड़े सभी कर्मो का जबाब देह बनता है।

लेकिन जब एहसास हुआ तब काफी देर हो चुकी थी।

लेकिन यह एहसास अपने उन सिपहसालारों को करा दो।

जो अब भी तुम्हारे पग चिन्हों पर चलने की हुकांर भर रहे हैं।

धरती मां के आंचल को दागदार कर रहे हैं।

उन्हे स्वप्न में जाकर ही सही, यह संदेश दे दो।

कि जिहाद का अर्थ धर्म-मजहब के लिए लड़ना नहीं है।

जिहाद का अर्थ देश की तरक्की के लिए संघर्ष करना है।

अगर तुम यह संदेश देने में सफल रहे।

तो फिर धरा पर वसुधैव कुटुंबकम की कल्पना साकार होगी।

चारों ओर अमन चैन होगा, मानवता शर्मसार न होगी।

इसलिए एक बार फिर अपने मन को टटोलो।

मन में छिपी आंतंकी भावना की आहुति देकर,

हिंदू मुस्लिम सिख इसाई की कल्पना को साकार करो।

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