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मंगलवार, 19 मई 2009

बन्दे-मातरम्,,,बन्दे-मातरम्....,!![भूतनाथ ]

"..........गीता पर हाथ रखकर कसम खा कि जो कहेगा,सच कहेगा,सच के सिवा कुछ नहीं कहेगा ""हुजुर,माई बाप मैं गीता तो क्या आपके ,माँ-बाप की कसम खाकर कहता हूँ कि जो कहूँगा,सच कहूँगा,सच के सिवा कुछ भी नहीं कहूँगा...!!""तो बोल,देश में सब कुछ एकदम बढ़िया है...!!""हाँ हुजुर,देश में सब कुछ बढ़िया ही है !!""यहाँ की राजनीति विश्व की सबसे पवित्र राजनीति है !!""हाँ हुजुर,यहाँ की राजनीति तो क्या यहाँ के धर्म और सम्प्रदाय बिल्कुल पाक और पवित्र हैं,यहाँ तक की उनके जितना पवित्र तो उपरवाला भी नहीं....!!""हाँ....और बोल कि तुझे सुबह-दोपहर-शाम और इन दोनों वक्तों के बीच...

शंखनाद [ एक कविता ] - निर्मला कपिला जी

ये कैसा शँख नादये कैसा निनादनारी मुक्ति का !उसे पाना है अपना स्वाभिमानउसे मुक्त होना हैपुरुष की वर्जनाओ़ सेपर मुक्ति मिली क्यास्वाभिमान पाया क्याहाँ मुक्ति मिलीबँधनों सेमर्यादायों सेसारलय सेकर्तव्य सेसहनशीलता सेसहिष्णुता सेसृ्ष्टि सृ्जन केकर्तव्यबोध सेस्नेहिल भावनाँओं सेमगर पाया क्यास्वाभिमान या अभिमानगर्व या दर्पजीत या हारसम्मान या अपमानइस पर हो विचारक्यों किकुछ गुमराह बेटियाँभावोतिरेक मेअपने आवेश मेदुर्योधनो की भीड मेखुद नँगा नाचदिखा रही हैँमदिरोन्मुक्तजीवन कोधूयें मे उडा रही हैंपारिवारिक मर्यादाभुला रही हैंदेवालय से मदिरालय का सफरक्या यही है...