
ठिठक जाता है मनमुश्किल और मजबूरीवशनिकालने पड़ते है कदमघर से बाहरढेहरी से एक पैर बाहर निकालते हीएक संशय, एक शंदेहबैठ जाता है मन मेंकी आ पाउँगा वापस, घर या नहींजिस बस से आफिस जाता हूँकहीं उसपर बम हुआ तो.........या रस्ते में किसी दंगे फसाद में भी.......फिर वापस घर के अन्दरकर लेता हूँ कदमबेटी पूंछती हैपापा क्या हुआ ?पत्नी कहती है आफिस नहीं जाना क्या ?मन में शंदेह दबाए कहता हूँएक गिलाश पानी........फिर नजर भर देखता हूँबीवी बच्चों कोजैसे कोई मर्णोंमुखदेखता...