छिपे-छिपाए चकमा देकर,असला बारूद भरकरआ गये फिल्मी नगरी के भीतरदेखा इंसानी चेहरों कोमासूम भी दिखें, उम्र दराज जिंदगियां भी थीपर शायद दरिंदगी छुपी थी सीने मेंउनके जहन में था व्य्हसियानापनकुछ आगे पीछे सोचे बगैरमचा दिया कोहराम, बजा दी तड़-तड़ की आवाजेंबिछादी लाशे धरती परक्या बच्चें, बूढे और जवानक्या देशी व विदेशी, चुन-चुन कर निशान बनायालाल स्याही से, पट गया धरती का आंगनकुछ हौसले दिखे, दिलेरी का मंजर दिखाजो निहत्थे थे पर जुनून थाटकरा गए राई मानो पहाड़ सेखुद की परवाह किए बगैरशिकस्त दिया खुद भी खाईवीरता से जान गवाई, बचे खुचे दहशतगर्दआग बढ गए, ताज को कब्जे...