हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 25 जुलाई 2010

नव गीतिका...........................डॉ. वेद व्यथित

बहुत तन्हाईयाँ मुझ को भी तो अच्छी नही लगती परन्तु क्या करूं मुझ को यही जीना सिखाती हैं बहुत तन्हाइयों के दिन भुलाये भूलते कब हैं वह तो खास दिन थे जिन्हों की याद आती है यही तन्हाईयाँ तो आजकल मेरा सहारा हैं सफर में जब भी चलता हूँ हई तो साथ जाती हैं उन्होंने भूल कर के भी कभी आ कर नही पूछा यह तन्हाईयाँ ही हाल मेरा पूछ जाती हैं बहुत अच्छी हैं ये तन्हाईयाँ कैसे बुरा कह दूं इन्ही तन्हाइयों में तुम्हारी याद आती है यह तन्हाईयाँ मुझ से कभी भी दूर न जाएँ इन्ही के सहारे मेरी भी किस्ती पार जाती है इन्ही...