तुम पुरुष अहम् के हो सुमेरु ,मैं नारी आन की प्रतिमा हूँ |तुम पुरुष दंभ के परिचायक ,मैं सहज मान की गरिमा हूँ |मैं परम शक्ति, तुम परम तत्व,तुम व्यक्त भाव मैं व्यक्त शक्ति |तुमको फिर रूप-दंभ कैसा,तुम बद्ध जीव मैं सदा मुक्त |जिस माया में तुम बंध जाते,मैं ही वो माया बंधन हूँ. |तुम जीव बने हर्षाते हो ,मैं ही जीवन स्पंदन हूँ. |तुम मुझे मान जब देते हो,बन शक्ति-पराक्रम हरषाऊँ |तुम मेरी आन का मान रखो,जीवन का अनुक्रम बनजाऊँ |तुम मेरे मान का मान धरो,मैं पुरुष अहम् पर इठलाऊँ |तुम मेरी गरिमा पहचानो,मैं सृष्टि-क्रम बनी हरषाऊँ ||बन पूरक एक दूसरे के,इक दूजे...