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मंगलवार, 8 जून 2010

ज़िंदगी..........(श्यामल सुमन).................गजल

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।लक्ष्य नियति के साथ चलना और...