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मंगलवार, 1 मार्च 2011

एक बात पूंछू {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

एक बात पूंछू !क्या मेरे विचारों से परेभी कोई वजूद है तुम्हारा? क्या मुझे भी रखा है तुमने अपनी स्म्रतियों के घरौंदे में सहेज कर ? क्या तुम भी महसूस करती हो, सरकती, महकती हवा में मेरी तड़प... जैसे मै देखता हूँ तुम्हारी  चंचलता उड़ती तितलियों में बहते बादलों में, और तुम्हारी मुस्कराहट खिलते हुए फूल में... क्या तुम्हे भी खलती है मेरी कमी ? क्या तुम्हे भी लगता है , सब कुछ होते हुए भी कुछ अधूरा-अधूरा जैसे, फूल है, पर  खुशबू नहीं ख़ुशी है पर हंसी नहीं चांदनी रात है पर रोशनी नहीं... एक बात पूंछू क्या तुम भी ढूँढती हो मुझे गाँव की गलियों शहर...