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शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

"सावन में बादल का, छा जाना अच्छा लगता है।" (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

(बहिन अल्पना वर्मा ने मेरी एक पोस्ट परटिप्पणी के रूप में इस गीत की लय परदो पंक्तियाँ प्रेषित की थीं।उसी पर यह तुकबन्दी तैयार हो गयी।इसे छोटी बहिन अल्पना को सादर समर्पित कर रहा हूँ।) सावन में बादल का छा जाना, अच्छा लगता है।अल्पनाओं मे रंगों का आ जाना, अच्छा लगता है।।सपनों में ही मन से, मन की बातें हो जाती थी।चितवन की तिरछी चालों से, मातें हो जाती थी।भूली-बिसरी यादों को पा जाना, अच्छा लगता है।।कभी रूठना, कभी मनाना, मान-मनव्वल होती थी।गाना हो या हो रोना, वो सबमें अव्वल होती थी।दर्पण में भोली छवि का भा, जाना अच्छा लगता है।कितना ही बिसरायें, वो क्षण...

कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे

मिसरा-ए-तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर कही गई शेष ग़ज़लें हम पेश कर रहे हैं. बहुत ही बढ़िया आयोजन रहा. ये सारा कुछ श्री द्विज जी के आशीर्वाद से हुआ और आप सभी शायरों के सहयोग से जिन्होंने इस मिसरे पर इतनी अच्छी ग़ज़लें कही. मै चाहता हूँ कि तमाम पाठक थोड़ा समय देकर इतमिनान से सारी ग़ज़लें पढ़े और पसंदीदा अशआर पर दाद ज़रूर दें.ये तरही मुशायरा "नसीम भरतपुरी" को आज की ग़ज़ल की तरफ़ से श्रदाँजली है.1.पवनेन्द्र पवनउछल कर आसमाँ तक जब गिरा बाज़ार...

[ एक कविता]- आमंत्रित कवियत्री सुरभि की प्रस्तुति

करुनानिधान की कृपा सेवृक्षों पे नव किसलय निकलेकहकहे कुसुमो ने इस कोशल से लगायेकर्तव्य पथ से डेट रहेबसंत की कसौटी पे खरे रहेजगनिर्माता कलाकार भीदेख उन्हें कवि बनकविता में क्रान्ति बीजमानव मन में बो गया ,उसकी कविता बिखरे न ये सोच मोन कमाओका काक लगाअपना काम पूरा कर च...