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रविवार, 15 मई 2011

बाल श्रम.................डॉ कीर्तिवर्धन

मैं खुद प्यासा रहता हूँ पर
जन-जन कि प्यास बुझाता हूँ
बालश्रम का मतलब क्या है
समझ नहीं मैं पाता हूँ|

भूखी अम्मा, भूखी दादी
भूखा मैं भी रहता हूँ
पानी बेचूं,प्यास बुझाऊं
शाम को रोटी खाता हूँ|

उनसे तो मैं ही अच्छा हूँ
जो भिक्षा माँगा करते हैं
नहीं गया विद्यालय तो क्या
मेहनत कि रोटी खाता हूँ|

पढ़ लिख कर बन जाऊं नेता
झूठे वादे दे लूँ धोखा
अच्छा इससे अनपढ़ रहना
मानव बनना होगा चोखा|

मानवता कि राह चलूँगा
खुशियों के दीप जलाऊंगा
प्यासा खुद रह जाऊँगा,पर
जन जन कि प्यास बुझाऊंगा|