भारी बोझल आँखें अधखुली खिड़की से झांकती हैं..........बंद हो जाती है पलकें खुद ब खुद...बंद आँखें होते हुए भी मैं पहुच जाता हूँ बालकनी तकउठाता हूँ अखबार का बण्डलअलसाये बदन में हवा का झोंका सनसनी पैदा करता हैमैं बेमन खोलता हूँ समाज के दर्पण को दौडाता हूँ सरासर पूरे पन्ने पर नज़र पढता हूँ नाबालिग लड़की से दुराचार की खबरदहेज़ के लिए विवाहिता के जलाने का समाचार फिर दुखी मन बढ़ जाता हूँ अगले पन्ने पर जाती हैं नज़र क़र्ज़ से डूबे किसानो को आत्महत्या पर और राजनेता...