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गुरुवार, 20 अगस्त 2009

"कुंवारी बेटी का बाप" - अवनीश तिवारी

बेटी के जन्मदिन के शाम,मेरे आस की मोमबत्तियां बुझती हैं,उसकी बढ़ती उम्र के चढ़ते दिन मुझे,नजदीक आ रहे निवृत्ति की याद दिलाते हैं,बरस का अन्तिम दिन उसके मन में प्रश्नऔर मेरे माथे पर चिंता की रेखा छोड़ जाता हैबेटी के साँवले तस्वीर पर बार बार हाथ फेरता हूँ,शायद कुछ रंग निखर आए,उसके नौकरी के आवेदन पत्र को बार बार पढता हूँ,शायद कहीं कोई नियुक्ति हो जाए,पंडितों से उसकी जन्म कुण्डली बार-बार दिखवाता हूँ,शायद कभी भाग्य खुल जाएहर इतवार वर की खोज में,पूरे शहर दौड़ लगा आता हूँ,भाग्य से नाराज़, झुकी निगाहों का खाली चेहरा ले घर को लौट जाता हूँ,नवयुवक के मूल्यांकन...