ये जुल्म अत्याचार बैमानी और दहशतें क्या होगीं कभी कम ?देख कर जिन्हें हो जाती है इंसानियत की आँखे नमअश्लिलताऔर अराजकता को सहते रहते जैसे कोई मूक बाधिर बेशर्म इन्सान और ईमान तो आज कल बाजार में खिलौने की तरह बिकते हैंकागज के चंद टुकड़े हैं इनका धर्म जाती धर्म और मजहब के नाम पर दंगे होते रहते क्या मिटेगा कभी ये झूठा भ्रम ?मै "हिन्दू" तू "मुसलमान" तू "सिख" मै "इसाई" राजनैतिक और मजहबी संस्थाओं ने हमारे दिलो दिमाग में भर दिया है ये वहम भारत की सभ्यता और संस्कृति अब मिट सी रही है क्या अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचा पाएंगें हम आज की फिल्में खुलेआम कर...