पत्थर पर सिर पटक-पटक कर,धुन्ध धुन्ध जल होजाता है । जब रवि रश्मि विविध रन्गों के, ताने-बाने बुन देतीं हैं । किसी जलपरी के आंचल सा, इन्द्रधनुष शोभा बिखराता॥ १। पन्ख लगा उडता शीतल जल,आसमान पर छाजाता है। स्वर्ण परी सी रवि की किरणें, देह-दीप्ति जब बिखरातीं हैं; सप्त वर्ण घूंघट से छन कर, इन्द्रधनुष नभ पर छाजाता॥२।दीपशिखा सम्मुख प्रेयसि का,कर्णफ़ूल शोभा पाता है। दीप रश्मियां झिलमिल-झिलमिल, कर्णफ़ूल सन्ग नर्तन करतीं। विविध रंग के रत्नहार सा, इन्द्रधनुष आनन महकाता॥३।कानों में आकर के प्रियतम,वह सुमधुर...