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बुधवार, 16 मार्च 2011

जीवन {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

जीवन क्या है ? सुख का आभाव या दुःख की छाँव या के प्रारब्ध के हाँथ की कठपुतली हर क्षण अपने इशारो पर नचाती है किसके हाथ में है जीवन की डोर ? ************************** जीवन उसी का है जो इसे समझ सके तेरे हांथों में है तेरे जीवन की डोर ये नहीं महज प्रारब्ध का मेल, ये है सहज-पर-कठिन खेल भाग्य की सृष्टि निज कर्मो से होती है जीवन तेरे हांथों में जैसी चाहे वैसी बना हाँ, जीवन एक खेल है "प्यासा" हार जीत का शिकवा मत कर खेले जा, खेले जा खेले जा..................................