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शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

मोहब्बत....( ग़ज़ल )....कवि दीपक शर्मा

मोहब्बत के सफर पर चलने वाले राही सुनो,मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है,महज़ शादी ही, मोहब्बत का साहिल नहीं,मंजिल तो इससे भी दूर, बहुत दूर जाती है ।जिन निगाहों में मुकाम- इश्क शादी हैउन निगाहों में फ़कत हवस बदन की है,ऐसे ही लोग मोहब्बत को दाग़ करते हैंक्योंकि इनको तलाश एक गुदाज़ तन की है ।जिस मोहब्बत से हजारों आँखें झुक जायें ,उस मोहब्बत के सादिक होने में शक हैजिस मोहब्बत से कोई परिवार उजड़ेतो प्यार नहीं दोस्त लपलपाती वर्क है ।मेरे लफ्जों में,...

ग़ज़ल....मोनी शम्सी

गमों की धूप से तू उम्र भर रहे महफ़ूज़,खुशी की छांव हमेश तुझे नसीब रहे.रहे जहां भी तू ऐ दोस्त ये दुआ है मेरी,मसर्रतों का खज़ाना तेरे करीब रहे.तू कामयाब हो हर इम्तिहां में जीवन के,तेरे कमाल का कायल तेरा रकीब रहे.तू राहे-हक पे हो ता-उम्र इब्ने-मरियम सा,बला से तेरी कोई मुन्तज़िर सलीब रहे.नहीं हो एक भी दुश्मन तेरा ज़माने में,मिले जो तुझसे वो बनके तेरा हबीब रहे.न होगा गम मुझे मरने का फिर कोई ’शमसी’,जो मेरे सामने तुझसा कोई तबीब र...