सब जानते हैं-सांप्रदायिकता!धर्म,भाषा,रंग,देश...न जाने कितनी ही बिंदुओं परतुम कटार उठाओगेऔर दौड़ने लगोगे एकाएकहांफते हुए-कस्बा-कस्बाशहर-शहरगांव-गांव।और यह भीसब जानते हैं-कि अपने चरित्रानुसाररोती-बिलखती बुत बनी आत्माओंखंडहरों के बीच छुप जाओगेशायद तुम्हारे भीतर का आदमीडरा होगा थोड़ी देर के लिए।तब-उन्हीं खंडहरोंकाठ बनी आत्माओं के बीच सेनिकल आएगा धीरे-धीरेएक कस्बाएक शहरएक गांव....एक गांव....