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सोमवार, 23 सितंबर 2013

एक चिट्ठी मिली ..... मेरे यार की --- -(लक्ष्मी नारायण लहरे )

बरसों की खबर -खबर बनकर रह गयी 
गलियों की चौड़ाई सिमट गयी 
उपाह-फोह की आवाज कमरे में दम तोड़ दी 
बदल ,गयी लोग -बाक की भाषा 
नजरें बदल गयी नया बरस आ गया 
ख़बरों में नई उमंग -तरंग नए संपादक आ गए 
गलियां में  जो हवा बह रही थी 
ओ हवा प्रदूषित हो गयी 
प्यार करने वाले पथिक 
अपनी राह बदल दी 
लोगों का भ्रम जब टूटा 
पथिक की नई कहानी बन गयी 
सच है ,भ्रम का कोई पर्याय नहीं होता 
मृत्यु निश्चित है पर 
उस पर किसी का विचार नहीं जमता 
जीने की कवायद जारी है 
कोई प्रेम से ,
नफरत नहीं करता 
समाज और परिवार का कोई नाम बदनाम नहीं करता 
लोग हंसते 
इसलिए  परिवार प्रेम पर विश्वाश नहीं करता 
मेरे यार की खबर है .....
एक चिट्ठी मिली है  ..
प्रेम पत्र ,
नहीं -नहीं 
बधाई -पत्र  है 
नए वर्ष की 
लिखा है ....
दोस्ती करके किसी को धोखा ना देना 
दोस्त को आंसू का तोहफा ना देना 
कोई रोये आपको याद करके ...
जिंदगी में किसी को ऐसा मौका ना देना 
नव वर्ष हो मंगलमय ! 
ऐसा सन्देश हर अंतिम ब्यक्ति को लिखना ...

मंगलवार, 7 मई 2013

माँ

माँ शब्द ही एक सुन्दर एहसास है
ममता, उदारता, नम्रता
प्रेम और सम्मान का !

आशीर्वाद , निर्मलता
ईश्वर और उसके विश्वास का !!

बेटा सदा माँ का लाडला
सुन्दर और सुशील
और कोमल होता है !

सोमवार, 21 जनवरी 2013

नारी शक्ति

अब नारीयो ने भी लीया साहस से काम !
अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !!
नारी कभी बनती है जननी कभी माता !
पुत्र बनता है कुपुत्र लेकिन माता नही है कुमाता !!
सिर्फ नीर्बल नही क्षत्राणी है लक्ष्मी बाई और चादँबीबी है !
शिवा जी और अकबर जैसे की माता और बीबी है !!
अब शिक्षा मे अव्वल और खेल मे आगे !
अब उनके दुश्मन भी रण छोण के भागे !!
अब सीमा पर करती है रक्षा !
अब दहेज लेने वाले मागे भीक्षा !!
अब समाज मे रखती है स्थान !
और सब करते है सम्मान !!
अब अंतरिक्ष मे भरती है उङान !

शनिवार, 12 जनवरी 2013

मां

 ममता और सौहार्द से बनी हुयी है मां !
कोई कहे कुमाता कोई माता लेकिन है मां !!
जिसके स्पर्श भर से बेता प्रसन्न हो उठता है !
जिसके उठने से ही सुरज भी उठता है !!
मां को देखकर बच्चा पुलकीत हो उठता है !
बच्चो को पाकर मां का रोम-रोम खिल उठता है !!
यौवन मे भी मां को बेटा लगता प्यारा !
बेटा समझ न पाता मन का है कच्चा !!
सारी दुनिया समझे उसे घोर कपुत !
मां को लगता बेटा सच्चा,वीर,सपुत !!
मां शब्द मे है ममता का एह्सास !
बरसो है पुराना मां का इतिहास !!

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

प्रकृति

रात की निर्जनता का सृजन कोई बतला दे !
इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !!

सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला दे !
इस दुनिया के निर्मम जीवन के अन्त कोई बतला दे !!

प्रेम और घृणा के खेल का अन्त कोई बतला दे !
रात और दिन के मिलन का अन्त कोई बतला दे !!

इस दुनिया के निर्मम रीति रिवाजो का अन्त कोई बतला दे !
इन लोगो के लोभ का अन्त कोई बतला दे !!

मानवता और निर्दयता के संघर्ष का अन्त कोई बतला दे !
मेरे इस कटु जिवन का अन्त कोई बतला दे !!

सुरज चांद सितारो का अन्त कोई बतला दे !
सुरज की चुभती किरणो का अन्त कोई बतला दे !!

मै और तु के संघर्ष का अन्त कोई बतला दे !
मेरे इस प्रकाश खोज का अन्त कोई बतला दे !!

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

नारी (एक बेबसी)

जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन सब थे कटु वाचाल !!
वह कली सी बढ्ने लगी !
सबको बोझ सी लगने लगी !!
वह सबको समझ रही भगवान !
लेकीन सब थे हैवान !!
वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर !
लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !!
सबने कीया उसका ब्याह !
वह हो गयी काली स्याह !!
ससुर ने मागा दहेग हजार !
न दे सके बेचकर घर-बार !!
सास ने कीया अत्याचार !
वह मर गयी बिना खाये मार !!
पती ने ना दीया उसे प्यार !
पर शिकायत बार-बार !!
किसी ने ना दिखायी समझदारी !
यही है औरत कि बेबसी लाचारी !!
ना मीली मन्जिल उसे बन गयी मुर्दा कन्काल !
सबने दिया अपमान उसे यही बन गया काल !!
यही है नारी कि बेबसी यही है नारी की मन्जिल !
यही हिअ दुनीय कि रीत यही है मनुष्य का दिल !!
मै दुआ करता हू खुदा से किसी को बेटी मत देना !
यदी बेटी देना तो इन्सान को हैवनीयत मत देना !!

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

शकुन्तला


दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा !
दुश्यन्त तुम्हे भुल जायेगा शकुन्तला !!
शकुन्तला इस बात से थी अज्ञात !
की उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!
अनुसुइया और अनुप्रिया ने कराया उसे ज्ञात !
यह सुनते ही उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!
वह दौङी और दुर्वाशा को कीया चरणस्पर्श !
वह अपनी जिन्दगी से कर रही थी संघर्ष !!
फिर शकुन्तला ने की छमा याचना !
दुर्वाशा ने भी की उसके लिये मंगल कामना !!
मेरे कण्ठो से जो तुम्हारी जिन्दगी मे आयी बाढ !
उसे दुर करेगी मीन और मुद्रीका की धार !!
जब शकुन्तला के वियोग मे पेङ पौधे सुख जाये !
तथा मृग और हीरन आसु खुब बहाये !!
पेङो को ऐसा लगता मानो अभी गिर जायेंगे !
जीवो को ऐसा लगता मानो अभी मिट जायेंगे !!
माता-पिता रोकर आंसु खुब बहाये !
पशु-पक्षी भी दुर्वाशा को कोसते जाये !!
विश्वामित्र और मेनका का रोकर बुरा हाल !
नदी और बादलो के लिये बन गया काल !!
शकुन्तला कही और मन कही और !
ऐसा लगता जैसे रस्सी के दो छोर !!
दुर्वाशा अपने इस शाप पर पछताये !
तथा अपने मन को झुठी दिलासा दिलाये !!
कष्ट के इस दिन मे भगवान ने ना किया रहम !
लोगो के लिये छ्ण-छ्ण बन रहा था कहर !!
सुहावना मौसम भी लग रहा था ज्वाला !
सभी प्राणियो का बदन पङ गया था काला !!
दुर्वाशा से शकुन्तला विनती कर रही बार-बार !
आखो से अश्रु मोती गिर रहे हजार !!
जाते समय शकुन्तला की दुःखद थी विदायी !
अनुसुइया और प्रियंवदा रोते हुये आयी !!
जब शकुन्तला पहुच गयी मझधार !
प्राणी उन्हे देखे व्याकुल हो बार-बार !!
लोगो से ले विदायी गुरु शिष्यो के साथ !
शकुन्तला पहुच गयी दुष्यंत के पास !!
दुष्यंत के राज्य मे पहुचकर शकुन्तला हर्षित हो उठी !
दुष्यंत के व्यवहार से शकुन्तला कुलषित हो उठी !!
दुष्यंत ने शकुन्तला को पहचानने से किया इनकार !
शकुन्तला के जिवन मे हो गया अंधकार !!
शकुन्तला मन मे हो रही थी प्रसन्न !
दुष्यंत के व्यवहार से हो गयी सन्न !!
शकुन्तला ने गुहार लगायी बारम्बार !
लेकीन दुष्यंत ने पहचानने से किया इनकार !!
शकुन्तला मन ही मन भाग्य को रही कोश !
इस निष्ठुरता से उसके उङ गये होश !!
उपेक्षित हो वह नगर से चली !
डगमगाते हुये अनजान पथ पर चली !
शकुन्तला को देख महर्षी का ध्यान हुआ भंग !
वह शकुंतला को देखकर रह गये दंग !!
महर्षी ने आने का प्रयोजन पुछा चकीत होकर !
शकुन्तला ने सब हाल कहा रो-रोकर !!
महर्षी भी बाते सुनकर गये पसीज !
महर्षी का करुण हृदय गया रक्त से भीग !!
उन्होने शकुन्तला को दिया खुब प्यार !
शकुन्तला का हृदय हुआ कृतज्ञ हुआ बार-बार !!
शकुन्तला आश्रम के प्यार मे खो गयी !
मानो उनकी आत्मा दुष्यंत के प्रती सो गयी !!
वह दुष्यंत को एकदम गयी भुल !
फिर दुष्यंत को मालुम हुइ अपनी भुल !!
जब मुद्रिका आयी उनके हाथ !
तब मालुम हुई उन्हे सारी बात !!
अपनी बाते सोचकर हो रहा था उन्हे दुःख !
किसी ने नही देखा था ऐसा मलीन मुख !!
ग्लानी से उनका मुख पङ गया था काला !
दर्द ऐसे हो रहा था जैसे चुभ रहा हो भाला !!
क्रोध से उन्होने दिया सैनिको को आदेश !
शकुन्तला को ढुढो चाहे जिस देश !!
खुद भी ढुढने निकल गये दुष्यंत !
एक-एक पल ऐसा लग रहा था जैसे जिवन का अंत !!
 उधर शकुन्तला ने वर्षो बिता दिया !
और वही एक नन्हे शिशु को जन्म दिया !!
भरत आश्रम मे बढने लगा !
शकुन्तला का मन हर्षीत होने लगा !!
शकुन्तला और भरत का सभी करते थे सम्मान !
धिरे-धिरे भरत का बढने लगा मान !!
दुष्यन्त की सेना खोजती रह गयी !
शकुन्तला स्वप्न मे सोती रह गयी !!
दुष्यन्त भी थक हारकर खोजने चल पङे !
शकुन्तला की याद मे दुष्यन्त रो पङे !!
खोजते-खोजते दुष्यन्त महर्षी के आश्रम पहुच गये !
वहा के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर दुःख भुल गये !!
दुष्यन्त ने द्वार पर भरत को देखा !
भरत ने भी उन्हे आश्चर्य चकित हो देखा !!
दुष्यन्त ने पुछा पिता का नाम !
चकित हो उठे सुनकर अपना नाम !!
दुष्यन्त यह देख हर्षीत हो गये !
उनके आंखो से अश्रु बिन्दु गिर गये !!
दुष्यन्त ने शकुन्तला को देखा !
शकुन्तला ने भी जैसे स्वप्न था देखा !!
शकुन्तला दुष्यन्त से कुछ ना बोल सकी !
ओठ फङफङाकर भी मुह ना खोल सकी !!

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

कभी सोचा ना था


कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन कभी टुटा नही !!
प्यार देता रह गया हाथ आया कुछ नही!
मौत के बाद साथ आया कुछ नही !!
यहा हर तरफ है दर्द, नफरत प्यार पाया कुछ नही !
लोग की इस सोच का अंदाज आया कुछ नही !!
मै प्यार करता हू सभी से अपना-पराया कुछ नही !
मै बनू सच्चा मनुष्य है इतर सपना कुछ नही !!
लोगो के मै काम आंऊ और इच्छा कुछ नही !
प्यार मै दू सभी को नफरत मै करू नही !!

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मेरा परिचय

पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से !
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग हूं !
मगर मै सोचता कि दुनिया मुझसे अलग है !!
पता नही क्यूं अब ताने सुन कष्ट नही होता !
पता नही क्यूं अब तानो का असर नही होता !!
पता नही क्यूं लोगो को है मुझसे है शिकायत !
पता नही क्यूं बिना बात के दे रहे है हिदायत !!
पता नही क्यूं लोगो की सोच है इतनी निर्मम !
पतानही क्यूं इस दुनिया की डगर है इतनी दुर्गम !!

बुधवार, 2 जनवरी 2013

हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये, 
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग तो अब न जाने, 
क्या-क्या कहने लगे !                                                                
आखो से अब आसु,
बहने लगे !
लोगो कि चंद बाते पुकारे मुझे,
पर ये कटु जहर हम सहने लगे !
लोग कहते गये और हम सहते गये,
और जिंदगी की ये जंग लङते गये !