आधुनिक जीवनशैली और ऊँची आकांक्षाओं के बोझ तले वय बुरी तरह से पिस रहा है । इसके प्रभाव से किशोर वय व लड़के-लड़कियाँ मूल्यो, नैतिकताओं और वर्जनाओं से उदासीन और लापरवाह होते चले जा रहे हैं । जो मूल्य और मानदंड इन्हे विकसीत और सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक होते हैं, उन्ही पर कुठारघात किया जा रहा है। और इसके लिए जिम्मेदार है- आज की तेज रफ्तार भरी जिंदगी, जिसने अभिभावकों-शिक्षकों तथआ इन किशोरों के बीच एक बढा़ फासला खड़ा कर दिया है, एक दूरी पैदा कर दी है । आधुनिकता की आँधी में यह दूरी अमाप दरार में बदलती जा रही है । इसकी भयावह कल्पना से रोंगटे खड़े हो जाते...