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बुधवार, 4 नवंबर 2009

यूं मेरे नव-गीत बन गए ---------(डा0 श्याम गुप्त)

गीत व कविता वस्तुतः मन की गहराई से निस्रत होते हैं , जीवन एक गीत ही है , जीवन व आयु के विभिन्न सोपानों परउठतेहुए विभिन्न भावों को सहेज़ते हुएमन के भाव- गीतों के विभिन्न रूप भाव निसृत होते हैं उसी के भावानुसार ही गीतनिसृतहोते हैं, इन गीत भावों को प्रत्येक मन , मानव ,व्यक्तित्व अपने जीवन में अनुभव करता है, जीता है , बस कवि उन्हेंमानसकी मसि में डुबो कर कागज़ पर उतार देता है ; देखिये कैसे --)दर्द बहुत थे ,भुला दिए सब ,भूल न पाये ,वे बह निकले -कविता बनकर ,प्रीति बन गए |दर्द जो गहरे ,नहीं बह सके ;उठे भाव बन ,गहराई से,वे दिल की अनुभूति बन गए |दर्द मेरे...