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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

(कविता)-- खुशियों का इंतज़ार -- कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

(कविता)-- खुशियों का इंतज़ार -- कुमारेन्द्र सिंह सेंगर==================================सुबह-सुबह चिड़िया ने चहक कर उठाया हमें, रोज की तरह आकर खिड़की पर मधुर गीत सुनाया हमें। सूरज में भी कुछ नई सी रोशनी दिखी, हवाओं में भी एक अजब सी सोंधी खुशबू मिली। फूलों ने झूम-झूम कर एकदूजे को गले लगाया, गुनगुनाते हुए पंक्षियों ने नया राग सुनाया। हर कोना लगा नया-नया सा, हर मंजर दिखा कुछ सजा-सजा सा। इसके बाद भी एक वीरानी सी दिखी, अपने आपमें कुछ तन्हाई सी लगी। अचानक चौंक कर उठा तो सपने में खुद को खड़ा पाया, खुशनुमा हर मंजर को अपने से जुदा पाया। आंख मल कर दोबारा कोशिश...