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बुधवार, 10 मार्च 2010

मुश्किलें आती रही------[गजल]------- पुरु मालव

मुश्किलें आती रही, हादिसे बढ़ते गये ।
मंज़ि़लों की राह में, क़ाफ़िले बढ़ते गये ।

दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर नज़दीक़ थे
पास ज्यूँ-ज्यूँ आये हम, फ़ासले बढ़ते गये ।

राहरवों का होंसला, टूटता देखा नहीं
ग़रचे दौराने-सफ़र, हादिसे बढ़ते गये ।

साथ रह कर भी बहम हो न पाई ग़ुफ़्तग़ू
ख़ामशी के दम ब दम, सिलसिले बढ़ते गये ।

हम थे मंज़िल के क़रीब, और सफ़र आसान था
यक-ब-यक तूफ़ां उठा, वस्वसे बढ़ते गये ।

किस्सा-ए-ग़म से मेरे कुछ न आँच आई कभी
मेरे दुख और उनके 'पुरु' क़हक़हे बढ़ते गये ।