अखबारमैं रोजाना पढ़ता हूँ अखबारइस आशा के साथकि-धुंधलके को चीरती सूर्य आभालेकर आई होगी कोई नया समाचार....।लेकिन पाता हूँरोजाना प्रत्येक कॉलम कोबलात्कार, हत्या,और दहेज कि आग से झुलसताया फिर धर्म की आड मेंखूनी होली से सुर्ख सम्पूर्ण पृष्ठसाथ में होता हैराजनेताओं का संवेदना संदेशआतंकवाद के प्रति शाब्दिक आक्रोशजो इस बात का अहसास दिलाता हैसरकार जिन्दा तो है हीसंवेदनशील भी है।तभी तो ढ़ू्ढते हैं वे हर सुबहनिंदा और शोक संदेशों मेंअपना नाम ।फिर भी न जाने क्योंअखबार में बदलती तारीखऔर नित नये विज्ञापनमुझे हमेशा आकर्षित करते हैंजिससे मैं देश की प्रगति कोसरकारी...