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सोमवार, 9 मई 2011

आँख का पानी ...........डॉ कीर्तिवर्धन

होने लगा है कम अब आँख का पानी,छलकता नहीं है अब आँख का पानी|कम हो गया लिहाज,बुजुर्गों का जब से,मरने लगा है अब आँख का पानी|सिमटने लगे हैं जब से नदी,ताल,सरोवरसूख गया है तब से आँख का पानी|पर पीड़ा मे बहता था दरिया तूफानीआता नहीं नजर कतरा ,आँख का पानी|स्वार्थों कि चर्बी जब आँखों पर छाईभूल गया बहना,आँख का पानी|उड़ गई नींद माँ-बाप कि आजकलउतरा है जब से बच्चों कि आँख का पानी|फैशन के दौर कि सबसे बुरी खबरमर गया है औरत कि आँख का पानी|देख कर नंगे जिस्म और लरजते होंठपलकों मे सिमट गया आँख का पानी|लूटा है जिन्होंने मुल्क का अमन ओ चैनउतरा हुआ है जिस्म से आँख का...

साँझ और किनारा {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

ढलता सूरज, सुहानी साँझ और सागर का किनारा पागल हवा ने किया जब दिलकश  इशारा उसके तसव्वुर में, मैं खो सा गया तन्हाई में एक आरजू जगी ऐसी न जाने कब मै किसी का हो सा गया सूरज की लालिमा फिर पानी में घुलने लगी उल्फत की बंदिशें फिर खुलने लगी दिल की अंजुमन फिर जमने लगी धड़कने तेज हुईं, सांसे थमने लगी जब उसके बाँहों का हर मुझे मयस्सर हुआ पा गया मैं दुनिया की सारी ख़ुशी, दीवानगी का कुछ ऐसा असर  हुआ  तभी एक लहर ने पयाम ये दिया इक पल पहले की ज़िन्दगी मैं भ्रम में जिया फिर हकीकत से हुआ दीदार मेरा वहां न थी सुहानी चांदनी, बस पसरा था गहरा अँधेरा वहां...