जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गएआंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गएखो गई वो सौंधी सौंधी देश की मिट्टी कहां ?वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गएबचपना भी याद है जब माँ सुलाती प्यार सेआज सपनों में उसी की गोद में हम सो गएदोस्त लड़ते जब कभी तो फिर मनाते प्यार सेआज क्यूं उन के बिना ये चश्म पुरनम हो गए!किस क़दर तारीक है अपना जहाँ उन के बिनादर्द फ़ुरक़त का लिए हम दिल ही दिल में रो गएथा मेरा प्यारा घरौंदा, ताज से कुछ कम नहींगिरती दीवारों में यादों के ख़ज़ाने खो गएहर तरफ़ ही शोर है, ये महफ़िले-शेरो-सुख़नअजनबी इस भीड़ में फिर भी अकेले हो...