सूखी हुई पत्तियों को,बिखेरती चिड़िया,चर्र-चर्र की आती आवाज,हवा के एक झोंके से,महुए की गंध चारों तरफ फैलती है ,करौदें के पेड़ पर ,बैठा बुलबुल चहकता हुआप्यार बिखरेता है ।खेतों की हरियाली,सूख चली है ,सूरज की गर्म किरणों के बीच,तपता किसान,हाथों में हसिया लिए,चेहरे पर मुस्कान की रेखा खींचता है,पसीने की बूँदों से तर-बतर उसका शरीर,उसे परेशान नहीं करता ,वह तो खुश है अपनी फसल को देख ,अपने जीवन को देख,पेड़ की छावं में छाया नहीं जीवन की ,फिर भी उसी की आड़ में बैठ ,मदमस्त है,प्रसन्न है...