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गुरुवार, 26 अगस्त 2010

"कोई हो ऐसा" {कविता} ---वंदना गुप्ता

कभी कभी हम चाहते हैं किकोई हो ऐसा जोहमारे रूह कीअंतरतम गहराइयों में छिपीहमारे मन की हरगहराई को जानेकभी कभी हम चाहते हैं किकोई हो ऐसा जोसिर्फ़ हमें चाहेहमारे अन्दर छिपेउस अंतर्मन को चाहेजहाँ किसी की पैठ न होकभी कभी हम चाहते हैं किकोई हो ऐसा जोहमें जाने हमें पहचानेहमारे हर दर्द कोहम तक पहुँचने से पहलेउसके हर अहसास सेगुजर जाएकभी कभी हम चाहते हैं किकोई हो ऐसा जोबिना कहे हमारी हर बात जानेहर बात समझेजहाँ शब्द भी खामोश हो जायेंसिर्फ़ वो सुने और समझेइस मन के गहरे सागर मेंउठती हर हिलोर कोहर तूफ़ान कोऔर बिना बोलेबिना कुछ कहे वो हमें हम से चुरा लेहमें हम...