कभी जो उड़ती थी हवाओं के साथ तेरी जुल्फें तो हवा भी महक जाया करती थीअब तो साँस लेना भी गुनाह सा लगता हैयाद है ना तुम्हे ...जब उस शाम रूमानी मौसम में ....चन्द गिरती बूंदों तले .... और उस पर वो ठंडी ठंडी सर्द हवा .....कैसे तुम्हारी जुल्फें लहरा रही थीं .....सच बहुत खूबसूरत लग रही थीं तुम .... वो बैंच याद है न तुम्हें ....वही उस पार्क के उस मोड़ पर ....जहाँ अक्सर तुम मुझे ले जाकर आइसक्रीम खाने की जिद किया करती थी .....हाँ शायद याद ही होगा ....कितना हँसती थी तुम .....उफ़ तुम्हारी हँसी आज भी मेरे जहन में बसी है ....उस पर से जब तुम जिद किया करती थी .....कि...