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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

तुम्हारा एक गुमनाम ख़त .........अनिल कांत जी

कभी जो उड़ती थी हवाओं के साथ तेरी जुल्फें तो हवा भी महक जाया करती थीअब तो साँस लेना भी गुनाह सा लगता हैयाद है ना तुम्हे ...जब उस शाम रूमानी मौसम में ....चन्द गिरती बूंदों तले .... और उस पर वो ठंडी ठंडी सर्द हवा .....कैसे तुम्हारी जुल्फें लहरा रही थीं .....सच बहुत खूबसूरत लग रही थीं तुम .... वो बैंच याद है न तुम्हें ....वही उस पार्क के उस मोड़ पर ....जहाँ अक्सर तुम मुझे ले जाकर आइसक्रीम खाने की जिद किया करती थी .....हाँ शायद याद ही होगा ....कितना हँसती थी तुम .....उफ़ तुम्हारी हँसी आज भी मेरे जहन में बसी है ....उस पर से जब तुम जिद किया करती थी .....कि...

उर्मिला की विरह वेदना--------[गीत]--------वंदना गुप्ता

१) प्रियतम हे प्राणप्यारेविदाई की अन्तिम बेला मेंदरस को नैना तरस रहे हैंज्यों चंदा को चकोर तरसे हैआरती का थाल सजा हैप्रेम का दीपक यूँ जला हैज्यों दीपक राग गाया गया हो२) पावस ऋतु भी छा गई हैमेघ मल्हार गा रहे हैंप्रियतम तुमको बुला रहे हैंह्रदय की किवड़िया खडका रहे हैंविरह अगन में दहका रहे हैंकरोड़ों सूर्यों की दाहकताह्रदय को धधका रही हैप्रेम अगन में झुलसा रही हैदेवराज बरसाएं नीर कितना हीफिर भी ना शीतलता आ रही है३) हे प्राणाधारशरद ऋतु भी आ गई हैशरतचंद्र की चंचल चन्द्रकिरण भीप्रिय वियोग में धधकतीअन्तःपुर की ज्वाला कोन हुलसा पा रही हैह्रदय में अगन लगा...