न देखने लायक था आज वही मंजर देखा ,खुशियों से भरे घर में कुदरत का कहर बरसते देखा ,आतंक के आतंकियों से एक माँ के लाल को,आखिरी साँस तक लड़ते हुए मरते देखा .वर्षों के ख्वाब होने वाले थे पूरे,ऐसे सपनों को क्षण भर में बिखरते देखा ,.जीवन के दूसरे सफर की उसने की थी तैयारी ,उसके सीने में लगते हमने खंजर देखा ,खून के रंग में रंगा लाल- लाल खंजर देखा, एक माँ की आँखों में आँसूओं का समंदर देखा . दूल्हे के शेहरे का फूल यूँ ही था बिखरा ,उन फूलों को दुल्हन को अर्थी पर करते अर्पण देखा.रोते बिखलते बूढ़े एक बाप को,जवान बेटे का ढोते...