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सोमवार, 6 अप्रैल 2009

जानता हूँ तुम वही हो................[एक कविता] आमंत्रित कवियत्री " प्रिया प्रियम तिवारी " की कलम से

जानता हूँ तुम वही हो,
वही शर्मीली गुड़िया,
बोलती आखें,
मुस्कुराता चेहरा,
सपनों में खोयी हुई,
दुनिया से बेगानी,
अपनी ही दुनिया में गुम-सुम,
जानता हूँ तुम वहीं हो।
पर वो मासूमियत ,
अब तुम में नहीं रही ,
कहते हैं वक्त के साथ,
सब कुछ बदल जाता है,
और तुम भी बदल गयी,
जानता हूँ तुम वहीं हो।।
पहले तुम खिलखिलाती थी,
बेवजह अचानक ही,
आज भी तुम वैसी ही दिखती हो ,
पर ............
अंदर से हताश
टूटी हुई,
जानता हूँ तुम वही हो,
और झेल रही हो,
टूटे हुए सपनों का दर्द ,
अपने कहे जाने वाले ,
अनजाने , अनकहे रिश्तों का दर्द,
जानता हूँ तुम वही हो।

बेटी.............[एक कविता ] - अनीता सिंह " अन्नू " की

प्राणों से प्रिय हुआ करती है , बेटी बाप को,
उसके लिए बेच देता है वो अपने आप को,

कौन सा दुख है जो बेटी के लिए सहता नहीं
जिसके घर बेटी जन्म लेती है वह दुखी रहता नहीं,

और उस बेटी को दे देता है किस सम्मान से ,
दान बढ़कर हो नहीं सकता कन्यादान से।।