
आज फिर देर रात हो गयीलेकिन तुम नहीं आयेकल ही तो आपने कहा थाआज जल्दी आ जाऊंगाजानती हूं मैंझूठा था वह आश्वासन .......पता नहीं क्योंफिर भी एक आस दिखती हैंहर बार हीतुम्हारे झूठे आश्वासन में........हाँ रोज की तरह आज भीमैं खूद को भूलने की कोशिश कर रही हूँ यादों के सहारेरोज की तरह सुबह हो जाएऔर तुमको बाय कहते ही देख लूं..........आज भी वहीं दिवार सामने है मेरेजिसमे तस्वीर तुम्हारी दिखती हैजो अब धूंधली पड़ रही हैजो आपके वफा काअंजाम है या शायदबढ़ती उम्र का...