हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

सोमवार, 7 सितंबर 2009

हिन्दी पखवाड़े में आज का व्यक्तित्व ---आचार्य हेमचंद्र


हिन्दी पखवाड़े को ध्यान में रखते हुए हिन्दी साहित्य मंच नें 14 सितंबर तक साहित्य से जुड़े हुए लोगों के महान व्यक्तियों के बारे में एक श्रृंखला की शुरूआत की है । जिसमें भारत और विदेश में महान लोगों के जीवन पर एक आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है । । आज की कड़ी में हम " आचार्य हेमचंद्र जी" के बारे में जानकारी दे रहें ।आप सभी ने जिस तरह से हमारी प्रशंसा की उससे हमारा उत्साह वर्धन हुआ है उम्मीद है कि आपको हमारा प्रयास पसंद आयेगा


भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्रमें आचार्य हेमचंद्रका नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे महान गुरु, समाज-सुधारक, धर्माचार्य, अद्दभुत प्रतिभा ओर मनीषी थे। समस्त गुर्जरभूमिको अहिंसामय बना दिया। साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाड्मयके सभी अंड्गो पर नवीन साहित्यकी सृष्टि तथा नये पंथको आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था। लोग उन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' के नाम से पुकारते थे। आचार्य हेमचंद्रका जीवन, रचनाकाल, कृतियां, प्रमुख घटनाऍ जैन इतिहास द्वारा संजोकर रखी गयी हैं।


काव्यानुशासन ने उन्हें उच्चकोटि के काव्यशास्त्रकारों की श्रेणी में प्रतिष्ठित किया। पूर्वाचार्योसे बहुत कछ लेकर परवर्ती विचारकों को चिंतन के लिए विपुल सामग्री प्रदान की। संस्कृत कवियोंका जीवनचरित्र लिखना कठिन समस्या है। सौभाग्यकी बात है कि आचार्य हेमचंद्रके विषयमें यत्र-तत्र पर्याप्त तथ्य उपलब्ध है। प्रसिद्ध राजा सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल राजा के धर्मोपदेशक होने के कारण ऐतिहासिक लेखकों ने आचार्य हेमचंद्र के जीवन चरित्र पर अपना अभिमत प्रकट किया है।

आचार्य हेमचंद्रका जन्म गुजरातमें अहमदाबाद से १०० किलोमिटर दूर दक्षिण-पश्र्विम स्थित धंधुका नगरमें विक्रम सवंत ११४५के कार्तिकी पुर्णिमा की रात्रि में हुआ था। मातापिता शिवपार्वती उपासक मोढ वंशीय वैश्य थे। पिताका नाम चाचिंग अथवा चाच और माताका नाम पाहिणी देवी था। बालकका नाम चांगदेव रखा। माता पाहिणी ओर मामा नेमिनाथ दोनों ही जैन थे। आचार्य हेमचंद्र बहुत बडे आचार्य थे अतः उनकी माताको उच्चासन मिलता था। सम्भव है, माताने बाद में जैन धर्मकी दीक्षा ले ली हो। बालक चांगदेव जब गर्भ में था तब माताने आर्श्र्वजनक स्वप्न देखे थे। ईसपर आचार्य देवचंद्र गुरुने स्वप्नका विश्लेषण करते कहा सुलक्षण सम्पन्न पुत्र होगा जो दीक्षा लेगा। जैन सिद्धांतका सर्वत्र प्रचार प्रसार करेगा। बाल्यकालसे चांगदेव दीक्षाके लिये दढ था। खम्भांत में जैन संघकी अनुमतिसे उदयन मंत्रीके सहयोगसे नव वर्षकी आयुमें दीक्षा संस्कार विक्रम सवंत ११५४में माघ शुक्ल चतुर्दशी शनिवारको हुआ। और उनका नाम सोमचंद्र रखा गया। शरीर सुवर्ण समान तेजस्वी एवं चंद्रमा समान सुंदर था। ईसलिये वे हेमचंद्र कहलाये। अल्पआयुमे शास्त्रोमें तथा व्यावहारिक ज्ञानमें निपुण हो गये।

२१ वर्षकी अवस्थामें समस्त शास्त्रोकां मंथन कर ज्ञान वृद्धि की। नागपुर (नागौर, मारवाड)के धनद व्यापारीने विक्रम सवंत ११६६में सूरिपद प्रदान महोत्सव सम्पन्न किया। आचार्यने साहित्य और समाज सेवा करना आरम्भ किया। प्रभावकचरित अनुसार माता पाहिणी देवीने जैन धर्मकी दीक्षा ग्रहण की। अभयदेवसूरिके शिष्य प्रकांड गुरुश्री देवचंद्रसूरि हेमचंद्रके दीक्षागुरु, शिक्षागुरु या विद्यागुरु थे। आचार्य हेमचंद्रने समस्त व्याकरण वांड्मयका अनुशीलन कर 'शब्दानुशासन' एवं अन्य व्याकरण ग्रंथोकी रचना की। पूर्ववतो आचार्योंके ग्रंथोका सम्यक अध्ययन कर सर्वांड्ग परिपूर्ण उपयोगी एवं सरल व्याकरणकी ‍रचना कर संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओंको पूर्णतया अनुशासित किया है। हेमचंद्रने 'सिद्वहेम' नामक नूतन पंचांग व्याकरण तैयार किया। इस व्याकरण ग्रंथका श्वेतछत्र सुषोभीत दो चामरके साथ चल समारोह हाथी पर निकाला गया। ३०० लेखकोंने ३०० प्रतियाँ 'शब्दानुशासन'की लिखकर भिन्न-भिन्न धर्माध्यक्षोंको भेट देने के अतिरिक्त देश-विदेश, ईरान, सीलोन, नेपाल भेजी गयी। २० प्रतियाँ काश्मीरके सरस्वती भाण्डारमें पहुंची। ज्ञानपंचमी (कार्तिक सुदि पंचमी)के दिन परीक्षा ली जाती थी। मौलिकता के विषयमें हेमचंद्रका अपना स्वतंत्र मत है। हेमचंद्र मतसे कोई भी ग्रंथकार नयी चीज नहीं लिखता। यद्यपि मम्मटका 'काव्यप्रकाश' के साथ हेमचंद्रका 'काव्यानुशासन' का बहुत साम्य है। पर्याप्त स्थानों पर हेमचंद्राचार्यने मम्मटका विरोध किया है। हेमचंद्राचार्यके अनुसार आनंद, यश एव कान्तातुल्य उपदेश ही काव्यके प्रयोजन हो सकते है तथा अर्थलाभ, व्यवहार ज्ञान एवं अनिष्ट निवृत्ति हेमचंद्रके मतानुसार काव्यके प्रयोजन नहीं है। हेमचंद्र ने अपने योगशास्त्र से सभी को गृहस्थ जीवन में आत्मसाधना की प्रेरणा दी। पुरुषार्थ से दूर रहने वाले को पुरुषार्थ की प्रेरणा दी। इनका मूल मंत्र स्वावलंबन है। वीर और द्दृढ चित पुरुषोंके लिये उनका धर्म है। हेमचंद्राचार्य के ग्रंथो ने संस्कृत एवं धार्मिक साहित्य में भक्ति के साथ श्रवण धर्म तथा साधना युक्त आचार धर्म का प्रचार किया। समाज में से निद्रालस्य को भगाकर जाग्रति उत्पन्न की। सात्विक जीवन से दीर्घायु पाने के उपाय बताये।


सदाचार से आदर्श नागरिक निर्माणकर समाज को सुव्यवस्थित करनेमें आचर्य हेमचंद्र ने अपूर्व योगदान किया। वृद्वावस्थामें हेमचंद्रसूरीको को लूता रोग लग गया। अष्टांगयोगाभ्यास द्वारा उन्होंने रोग नष्ट किया। ८४ वर्षकी अवस्थामें अनशनपूर्वक अन्त्याराधन क्रिया आरम्भ की। विक्रम सवंत १२२९मे महापंडितोकी प्रथम पक्ड्तिके पंडितने देहिक लीला समाप्त की। समाधिस्थल शत्रुज्जंय महातीर्थ पहाड स्थित है। प्रभावकचरितके अनुसार राजा कुमारपालको आचार्यका वियोग असह्य रहा और छः मास पश्चात स्वर्ग सिधार गया। हेमचंद्र अद्वितीय विद्वान थे। साहित्यके सम्पूर्ण इतिहासमें किसी दुसरे ग्रंथकारकी इतनी अधिक और विविध विषयोंकी रचनाएं उपलब्ध नहीं है।

व्याकरण शास्त्रके ईतिहासमें हेमचंद्रका नाम सुवर्णाक्षरोंसे लिखा जाता है। संस्कृत शब्दानुशासनके अन्तिम रचयिता है। इनके साथ उत्तरभारतमें संस्कृतके उत्कृष्ट मौलिक ग्रंथोका रचनाकाल समाप्त हो जाता है।

आपको मेरा नमन है

यह कविता में अपने गुरुओ के लिये लिख रही हूँ , आज में जो कुछ भी हूँ बस उनकी ही कॄपा है। ईश्वर से प्रार्थना है की उनका हाथ सदा मेरे सर पर रहे।

मैं थी शिशु
अज्ञान - अबोध - अचेतन
सभी से अन्भिज्ञा थी मैं
उसने अपनों से परिचित कराया
जीवन की पाठशाला का
उसी से पहला पाठ पाया
प्रथम गुरु !! सर्वोच्च माता को मेरा नमन है ।

पशुतव से जो मनात्तव तक ले आये
आप ज्ञान के दर्पण हो
आपको मेरा नमन है ।

अपने ही भावो को व्यक्त करना सिखाया
आप शब्द दाता है
आपको मेरा नमन है ।

अज्ञान के तिमिर को हर कर
जो ज्ञान दीप आपने जलाये
आपको मेरा नामन है ।

आप स्वयं जले "पर" की खातिर
जीवन में ज्ञान के जुगनू जलाये
आपको मेरा नामन है ।
आप मेरे जीवन में मेरूदंड बन कर खड़े है
हर क्षण मुझे रास्ता दिखाये, आप वो दिये हो
आपको मेरा नामन है

आप बिन जीवन कैसा जीवन
कल्पना करना कठिन है
कल्पना करना सिखाया
आपको मेरा नमन है ।

अंधेरी ज़िन्दगी में
ज्ञान की किरणे बिखेरी
कभी प्यार कभी फटकार से
जीवन की बगिया सहेजी
आप बागवान हो
आप को मेरा नामन है

जहाँ भी हुआ अंधेरा
आप बन कर प्रभात आये
अपने साथ अक्षय ज्ञान रत्नो की सौगात लाये
क्या है ये संसार हम जान पाये
आपको मेरा नमन है

मेरे जीवन में सदा
आप का दर्जा प्रथम है
ईश्वर के उस अंश को
मेरा नमन है
शत-शत नामन है