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सोमवार, 30 मार्च 2009

एक कविता .........[निर्मला कपिला जी की प्रस्तुति]

कुछ आढे तिरछेशब्द लिखेचाहती थीकविता लिखनाउन तमाम पलों कीजिनमें मैनेउम्र को जीयाबचपन के वो नटखट पलउछलना कूदनाधूम मचानाआँख मिचौलीछूना छुआनाकुछ खो कर भीहंसते जानादादी नानी कीकहानियों सेदिल बहलानापरियों के संगआसमान मे उडते जानामिट्टी के संग मिट्टीहो जानाफिर बरखा कीरिमझिम मेकिलकारियां मार नहानातालाब मे तैर घडे परउस पार निकल जानाफिर हंसते खेलतेयौवन का आनाखेल खेल मेकिसी के दिल कीधडकन हो जानाछुप सखियों सेख्वाबों के महल बनानाफिर एक हवा के झोंके सेख्वाबों का उड जानाएक पीडा एक अनुराग काऐहसास रह जानाफिर दुनियां की रस्मों कोरिश्तों मे निभानाउन पन्नो मेममता...